द्विवेदी - पत्रावली | Drivedi - Patrawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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No Information available about बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० द्विवेदी-पन्नावल्ी
सम्पकंमे आये | विद्याके प्रति अनुराग उनके मनमे पहले ही जग चुका
था। सिर्फ गुरीबीसे पैदा हुईं असुविधाके कारण उनकी पढ़ाई रुक गई
थी। बम्बईमें वह मराठी ओर गुजराती भाषाभाषी लोगोके सम्पकमे
आये । इस सम्पकका प्रभाव उन पर पडा; उन्होंने मराठी और गुजराती
का अभ्यास नर लिया । उनके पंडोसमे कुछ रेलवेके कक््लक थे। गरीबी
थी ही, रेलवेके क्लकोंके सम्परकसे रेलवेमें नोकरी करनेकी इच्छा पैदा
हुई। प्रारम्भिक अंग्रेज़ोका ज्ञान था ही। रेलवेकी नौकरी करके नागपुर
गये । नागपुरसे अजमेर चले गये । वहाँ राजगूताना रेलवेके लोको सुपरि-
र्टेण्डेर्टके श्राफिसमे १५) मासिकं पर कक हो गये | डॉ० उदयमानुसिंह
जीने लिखा है--उस पन्द्रह रुपयेमेसे “”* দা रुपया वे श्पनी माता
जीके लिए, घर भेजते थे, पॉचमे अपना खर्च चलाते थे और श्रवशिष्ट
पॉचमे एक गह-शिक्षुक रखकर विद्याध्ययन करते थे । »” इससे उनकी
ग्रीबीका पता तो लगता ही है; साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि हिवेदी
जीके अन्दर विद्याके ग्रति प्रगाहु अनुराग और परिवारके प्रति जिम्मेदारीकी
गम्भीर मावना प्रारम्भसे ही थी ।
अजमेरमे उनका मन न लगा। वह पुनः बम्बई वापस आ गये ।
बम्बईमे उन्होंने ठेलीगराफी सीखी और जी० श्राई० पी ° रेलवेमे सि्यलर
हो गये। इस समय उनकी आयु करीब बीस वषंके थी। सिमलरके बाद
उन्होने टिकट बाबू, माल बाबू, स्टेशन मास्टर और प्लेटियर आदिके भी
काम किये । स्वमावसे भी विद्यानुरागी श्रौर साहित्यिक होते हुए, भी, उन्हे
सवथा असाहित्यिक काम करना पड़ा । पर अपने कामके प्रति जिम्मेदारी
निभानेमे उन्होने कभी भी कोताही नहीं की । उन्होंने अपने मनकी अपनी
भावनाओका दास नहीं वनाया। मन पर शासन किया । मनको काममे
जोता | काममे मन लगानेके कारण उनका काम सदेव श्रच्छा रहा।
फलस्वरूप पदोन्नति होती गई । इणिडियन मिडलैर्ड रेलवेके खुलनेपर भासी
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