द्विवेदी - पत्रावली | Drivedi - Patrawali

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Drivedi - Patrawali by बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० द्विवेदी-पन्नावल्ी सम्पकंमे आये | विद्याके प्रति अनुराग उनके मनमे पहले ही जग चुका था। सिर्फ गुरीबीसे पैदा हुईं असुविधाके कारण उनकी पढ़ाई रुक गई थी। बम्बईमें वह मराठी ओर गुजराती भाषाभाषी लोगोके सम्पकमे आये । इस सम्पकका प्रभाव उन पर पडा; उन्होंने मराठी और गुजराती का अभ्यास नर लिया । उनके पंडोसमे कुछ रेलवेके कक्‍्लक थे। गरीबी थी ही, रेलवेके क्लकोंके सम्परकसे रेलवेमें नोकरी करनेकी इच्छा पैदा हुई। प्रारम्भिक अंग्रेज़ोका ज्ञान था ही। रेलवेकी नौकरी करके नागपुर गये । नागपुरसे अजमेर चले गये । वहाँ राजगूताना रेलवेके लोको सुपरि- र्टेण्डेर्टके श्राफिसमे १५) मासिकं पर कक हो गये | डॉ० उदयमानुसिंह जीने लिखा है--उस पन्द्रह रुपयेमेसे “”* দা रुपया वे श्पनी माता जीके लिए, घर भेजते थे, पॉचमे अपना खर्च चलाते थे और श्रवशिष्ट पॉचमे एक गह-शिक्षुक रखकर विद्याध्ययन करते थे । »” इससे उनकी ग्रीबीका पता तो लगता ही है; साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि हिवेदी जीके अन्दर विद्याके ग्रति प्रगाहु अनुराग और परिवारके प्रति जिम्मेदारीकी गम्भीर मावना प्रारम्भसे ही थी । अजमेरमे उनका मन न लगा। वह पुनः बम्बई वापस आ गये । बम्बईमे उन्होंने ठेलीगराफी सीखी और जी० श्राई० पी ° रेलवेमे सि्यलर हो गये। इस समय उनकी आयु करीब बीस वषंके थी। सिमलरके बाद उन्होने टिकट बाबू, माल बाबू, स्टेशन मास्टर और प्लेटियर आदिके भी काम किये । स्वमावसे भी विद्यानुरागी श्रौर साहित्यिक होते हुए, भी, उन्हे सवथा असाहित्यिक काम करना पड़ा । पर अपने कामके प्रति जिम्मेदारी निभानेमे उन्होने कभी भी कोताही नहीं की । उन्होंने अपने मनकी अपनी भावनाओका दास नहीं वनाया। मन पर शासन किया । मनको काममे जोता | काममे मन लगानेके कारण उनका काम सदेव श्रच्छा रहा। फलस्वरूप पदोन्नति होती गई । इणिडियन मिडलैर्ड रेलवेके खुलनेपर भासी




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