नागरीप्रचारिणी पत्रिका वॉल १० | Nagaripracharini Patrika Vol. 10

Nagaripracharini Patrika Vol. 10 by रायबहादुर - Raybahdur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री काशीप्रसाद जायसवाल , एम ० ए०, विद्यामहोदघि. ३ को पहले यवन राजा का पाटलिपुत्र तक धावा करना, तथा कुछ ऐसे यवन ( (४780६ ) राजाओं की नाम देना जिनका कहीं भी वर्गन नहीं है, सिफ सिक्‍कों से आधुनिक ऐतिहासिक उनका नाम जानते हैं, एवं सिप्रा नदी पर ( मालवा में ) शर्कों का राज्य करना आदि अन्यत्र-अलफ्य वृत्तांत इसमें दिए हुए हें ! पाठ-संस्करण। -युगपुराग में बहत संन्तेपसे पृवं तीन युगं क वन क वाक तीसरे युग के अंत में महाभारत के नायकां को चचा-पुरस्सर महा- रानी ऋष्णा की झृत्यु के साथ कलि का आरभ माना है। यहाँ से लेकर प्रायः अत तक का पाठ में कल्कत्ता और काशी की प्रतियें* के आ्राधार पर ठीक करऊे देता हूँ । एशियाडटिक सेसाइटी की प्रति को (क), बनारस कालेज की प्रति के। (ख) तथा डा० कने की प्रति के अ्वतरणों की (ग) के संकेत से लक्षित करता हूँ। यदि किसी सज्जन कं! अन्य कोई प्रति मिले ते पाठांतर म॒ुम्ठे सूचित करने की कृपा करे या स्वयं छाप दे । मेरी प्रतियाँ बिलकुल शुद्ध नहीं हैं । शंकर और स्कंद के संवादरूप में युगपुराण है । | १ कालि का भारम्‌ | ( १ ) द्रपदस्य सुता ऋष्णा देहांतरगता सही || (२) ततान रन्तये दत्त श्व(: ?) शाते दपमंडक्षे | ( ३ ) भविष्यति कलनाम चतुथे पश्चिम युगं ॥ ( ४ ) ततः कल्ियुगस्यातता (5 दौ) परील्तिञ्ज[नमेजयः । ( ५ ) प्रथिव्यां प्रथितः श्रीमानुत्पत्थ्यति न संशय: ॥ 7 कत्ठकत्ता घु० पत्र १०३। काशा घु० पत्र #४# से । (२ ) शाते (स ) च्=शारं (क) (३ ) यह पंक्ति ( क ) में नहीं है । (9) कल्लियुगस्याता (क ), ०स्थांते ( ख।) ० नमेजय (क), (ख), (>) क ) शंशवः




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