हमें क्या खाना चाहिये ? | Hame Kya Khana Chahiye

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Hame Kya Khana Chahiye  by युगलकिशोर - Yugalkishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४) शरीर कामल हुआ है, सम्पाखू प्रकृति विर्द है नौर हर हा दमं, त्यागने याग्य है । इसी प्रकार भाग भी पड़ी खराय चीज है, इसफे पीन याक्षों के शरोर वो खराब दर जाते हो हैं दिमाग मा ख्प्ती सरीखा य बेकार हा जाता हैं, वास्तव म भेगड़ क्षोग भी दुरनियों को नजरों में गिरजाते हैं झ्योर किसी भी काम फे नहीं रहते, अमक्ष भी विप है भौर क्षार्सों मनुष्पों का जीयन नप्ठ कर देता दै इसफ खाने याज्ञे मदा नशे मे सूर रहते सौर घर, वेरा या समाम फे काम फे नही रहते वे ऊंघत॑ रहते हैं रीर शीप ही कृत्त फे युखमे चक्ष जाते हैं पिक्ञास प्रिय क्ञाग स्वस्मभन के किये इसका प्रयोग करते परऽ यद्ध ध्यान रह फि यइ शीघ्र दी रन्हें मिट्टी में मिल्ला देता हैं, थका हुआ घो वालुक सं कम तक चतगा ! क्‌ क्षोग दस्तवन्द्‌ फरने फे कलिय भमल् জাল हैं--भमल से दस्‍्वचन्द तो सरूर हो जाते हैं, पर पंट फूक्ष माता ह अओ भिक इनिफर ऐै--दूध पीने वाले छाटे-छाटे घरु्चोंकों उनकी माताए যাধা লজ হাজ ক্িজাবী ই, (জয় चीण फे ক্মঘিফ আজান से मृत्यु हो जाती है, भो अत्यक्ष विप है कया यह यरूचों को জাম पहुंचा सका है ९ श्ममस्त देने से चरुचोंका स्वाएप्य नध हो भत्ता ६ भोर एं कर्क की शिकायत हो चाची है, इसलिये मेरी राय म॑ रणि श्रमण-यष्वेयायष़ेषोनदी श्याना चादिये। `, पराय काफी झादि भी दमारे शथ्रु हैँ और इनका सेशन ,भी शरीर को यड़ी भारी द्वानि पहुंचाता हैं, अ्ण्यक्ष सो; भाय बडी मारी गरमी करती है सो खून को तपा कर , पतक्षा कर बेती है, इससे प्रमेह्ठ भादि रोग उत्पन्न होते हैं--सर्‌दी ,जुकाम में चाय




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