अतिमुक्त | Atimukti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राज कुमारी बेगानी - Raj Kumari Begani
No Information available about राज कुमारी बेगानी - Raj Kumari Begani
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्त में माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर अतिमुक्त गुरु के पाम चला
गया ।
दिन पर दिन वीतते गए । एक दिन अतिमुक्त अन्य श्रमणो के
साथ भिक्षा के लिए नगर की ओर जा रहा था | वर्षा ऋतु थी | कुछ
অময দূল ही मूमलाधार वर्षा हो चुकी थी। ज्वार के खेत के बगल से
निकलने वाले नाले में पानी वह रहा था। और एक ध्वनि आ रही थी
कल-कल कल-कल | ध्वनि कान में पड़ते ही अतिमुक्त सहसा खड़ा
हो गया | ह
लहरों की ध्वनि सुनकर उसे अपने बचपन की एक वात याद आ
गई | उस दिन भी ऐसे ही नाला उमड रहा था एवं ऐसी ही कल-कल
ध्वनि आ रही थी । बह उस पानी में कागज की नाव तेरा रहा था और
चम्पा भी अपनी नाव तेरा रही थी । उसकी नाव तो तिर गयी किन्तु
चम्पा की नावन जाने क्यों पानी के बहाव में उलट गयी | किन्तु
कितनी दुष्ट थी चम्पा ! कह रहो थी कि अतिसुक्त की नाव डूब गयी
है, उसकी नहीं। अतिमुक्त ने उसे एक थप्पड़ मारते हुए कहा था, यह
झूठ है ।
झूठ ही तो था !
अतिमुक्त संभवतः अपने को भूल बठा | वह धीरे-धीरे नाले की
ओर बढ़ा | लकड़ी का भिक्षापात्र पानी में तेरा कर वह देखता रहा और
बड़बढ़ाता रहा, यह झूठ है । वह देखो मेरी ही नाव तेर रही है ।
भ्रमणगण अतिमुक्त की यह दशा देखकर आश्चय-चकित हो उठ ।
अतिमुक्त ४
User Reviews
No Reviews | Add Yours...