महाभारत (भीष्म पर्व) | Mahabharat (Bhishm Parv)

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Mahabharat (Bhishm Parv) by गणेश - Ganesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तीसरा श्रध्याय ७ तीस प्रध्याय भयानक उत्पात वुरव्यासर शी याज्षे--ऐ राजन्‌. ! सा फी केप से गधे उत्पन्त हो रहे हैं। पुत्र लोग शनी जननियों के साथ रमण फरने लगे हैं। शनकतु के ते पान यूर्पों में लगे हुए देख पढने हैं । पुन्न उत्पल्त करने बाली गर्भवती टिव्रर्धा, भयानक बालक उत्पन्त करती हैं। मासमरी वनैले जीव, पत्नियों के साथ खाते एुए देख पढ़ते हैं, तीन सींग, चार नेत्र, पाँच पैर, दो लिक्षः दो मिट, दो ধু फोर बड़ी यही डाढ़ों बाले इन प्रशुशों फा दिखलायी पढ़ता बड़ा ही धगुभसखछ ह। देखो, सीन पैरों थाले मोर एवं चार दद और सौंगों पाझ्े पषी पैदा होते £ और थे मुख फाद अ्रमज्कल सूचक चीम्कार करते हैं। हनके अतिरिक्त और भी नयी नयी बातें देख पढ़ती हैं। तुग्हारे नगर में महाबादियों फी सियाँ নয জীব त्ोतों के जनती हैं। बोदी के गोयरस टत्यक्ञ होता है। कुतिया के गीदड़ भौर शुक्री अश्लुभभाषी मुर्गी शोर फरस ( ऊँट के बच्चे ) के जनती हें । किसी किसी स्त्री के एक साथ घार चार पंच ঘঘি কল্যাণ তল হীন গীত ই कन्याः जन्मते ही ईसती हैं, नाचती हैं थौर বানী हैँ । चारठात् जाति ক घुद्रजन महा- भय सूचक श्रद्दात करते हुए नाचते भौर गाते हैं । इस घराधाम पर जान ঘধনা हैं, मानों फाल्षप्रेरि भर शखधारिणी अनेक सूत्तियाँ बनी हुई हे । बालक भी हाथों में ४ंडे लिये हुए एक दूसरे के ऊपर भ्राक्रमण करते हैं। बालक चेल ही गेल मे नगरों फी रचना फर, लद्ने की श्रभिलापा से एक दूसरे के नगरों का नष्ट कर डालते हैं । पेदे मे पद, उपल और कुमद के पुष्प उपप्रक्षे ह ! चारो दिशा मे प्रचण्ड पवन चलता है । धूल का ধলা चंद नहीं ऐोता, घारवार भूचाल श्राता ह धार राहु का पूर्य पर झाक्रमण होता दै। केतु ने चित्रा नत्तत्र पर सवारी फसी है। जे राहु भौर केतु सदा सात राशियों के अन्तर पररा करते है, वे दस समय एक रारि एर श्रा




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