आजकलका भारत | Aajkalka Bharat

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रमेश धापर - Ramesh Dhapar

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रवीन्द्रनाथ चतुर्वेदी - Raveendranath Chaturvedi

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हरिशंकर - Harishankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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#इन्कलाव जिन्‍्दावाद) दूसरी ; स्वानास पपा श्वि सष, अपिक तौर्श हुईं | केवल परेन द्या देनेये ही खन चलनेवाना नदी, यह वात भी लोगेदयै समममे गर) ञ्नि यर्धिरनादिर छर्तरेनमरमोप की । इसके विना रानि सतवगाद्च दद श्रये न्दी । एरय समनं सत्य मिलप हृद्या था~स्वतञ्य গল करनय ~ उमे निए सुश्चवला करनेपते -ममी दौर एक द्ददामि হট বারি লাকি ন্ট নীম আই প্রীত “হল सिन्दावाद मे भातावरण॒ भज य । छाघीनना श्रन्दोलनके खम ये दोनों ही दातें विलकुल स्वाभाविक यी । दएल्‍तु सान्नाज्यवाइकों घस'रनरमें घक्के लग रहे थे। भारतमें लो उमे बहुत वदा भक्य लगा । इ समय सनानदादियेक्नि सुखस्म-मंये ससासी नह्ीगवा॥ आकप्रेक लग रही थी । विदेशी सास्ाज्यवादेके बदले स्यानीयं पूँलीदाइओं स्थापना करके चलनेवाता ने था। आकरासे মিন অজ टेंगनेके समान एकके चंगुलंगे मिलकर दूसरेके वैद्ीखानेयें पस्नेत्री ताइत न यी। हैं, यह ध्वश्य था रि यह चेनना स्ने सनान न थी । दुध लोगे तो स्ट थी, पर कुछमें अ्रपूरी थी। किल्तु इस चतनासे एक लाभ भव्य हुआ, कि हनागा आन्दोलन सुन्यवस्यित हुआ । स्थानीय पजीपतियोंके झैथवी इट्युतली बतनेगे चालसे इम्र बच गये । दूसरे महायुदकले समप्र हमारे इस श्व रेलनरी दिमायत शन्‍्हों हद ब्यक्त हुई । जमैन-णप्रानी फ्रौे अजेय माइम पढ़ी । ঘুর লামন দিল তন খা) चीन और दक्षिण पूर्व एमियके अन्तर देशोंगर जागनी सैनिेने अपनी जोरदार हुकूमत बजाई। जिशिश, प्रेंच और ढच লাসাললাদহীয়ী অশ্ভা লাগ অহী । श्रमेरिशने युदधशी दैयायो अधिक न हुई थी। फामिस्ट सतादी दोहग एश नासओे ओर बई रही थी- बीत्यसे लम्नेदाली रखियत सेनाओझे बत हाती हुई- अर अश्मात्री सीमाफर ज॑यलोंमे ओरसे ! ऐसे ধন अवसखार नेवी अच्छी दत अई। हमारे देशत् মী বহী हाल होगा, ऐसा দন लग रहा था। परननु लोग अ्तुमदी हो बुरे ये, उन्होंने स्चाज्ययादसे क्रिमी भी अदस्थामें सनर्मष्य न নয निश्चय किया था । श




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