पंचतन्त्र | Panchtantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्चतंत्र रे इसलिए हंस जैसे पानी में से दूध ले लेता हैँ उसी तरह छोटी चीज छोड़कर सार-वस्तु ग्रहण करना चाहिए । सब शास्त्रों में पारंगत तथा विद्यार्थी-वर्ग में कीति-प्राप्त विष्णुद्र्मा नाम का ब्राहमण यहां हैं । राजकुमारों को आप उन्हें सौंप दीजिए । वे उन्हें जल्दी ही बुद्धिशाली बना देंगे । राजा ने यह सुनकर विष्णुद्यर्मा को बुलाकर कहा भगवन्‌ मेरे ऊपर कृपा करके आप इन राजकुमारों को अथंशास्त्र में निपुण कर दीजिए । में आपके लिए सौगुनी जागीर की व्यवस्था करूंगा । विष्णुश्चर्मा ने राजा से कहा देव मेरी तथ्य की बात सुनिए । में केवल सौगुनी जागीर के लोभ से भी अपनी विद्या नहीं बेच सकता पर जो में आपके पुत्रों को छः महीने में नीति-शास्त्रज्ञ न बना दूं तो अपना नाम छोड़ दूंगा । बहुत कहने से क्या फायदा ? मेरी लऊठकार सुनिएं। में धन क॑ लालच से कोई बात नहीं कहता । अस्सी वर्ष की उमर होने से मेरी शिथिल इन्द्रियों के लिए धन की कोई जरूरत नहीं है लेकिन आपकी प्रार्थना की सिद्धि के लिए में शिक्षा को मनोर॑थ्जक बनाऊंगा। आज का दिन आप लिख लीजिए । यदि में छः महीने के अभ्यास के बाद आपके पुत्रों को दूसरों की तरह नीति-शास्त्र में पंडित न कर दूं तो में मोक्ष का भागी न बनूं । सचिवों-सहित राजा ब्राहमण की यह असंभव प्रतिज्ञा सुनकर हर्षित तथा विस्मित हुआ तथा उसे. आदरपूर्वेक अपने कुमारों को सौंपकर छुट्टी पई । विष्णुशर्मा कुमारों को अपने साथ लें. गए तथा उनके लिए ४्पाँच तंत्र यथा मित्र-भेद मसित्र-संप्राप्ति काकोलूकीय लब्धप्रणाश तथा अपरीक्षितकारक रचकर उन्हें पढ़ाया । राजपुत्र भी उसे पढ़कर छः महीनों में नीति-शास्त्र में निपुण हो गए । उस दिन से यह पंचतंत्र नामक बालकों की दिक्षा के लिए पृथ्वी पर चलने लगा । अधिक क्या कहा जाय-- जो इस नीति-शास्त्र का नित्य अभ्यास करता है या सुनता है वह इन्द्र से भी कभी हार नहीं सकता ।




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