जिनदत्त चरित्र | Jindutt - Charitra

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Jindutt - Charitra by श्रीलाल जैन - Srilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम से . ९. है! इस चातका ध्याने घना रहता था ओर तदयुसार पाध- भार्गसे मीत दो धार्मिक श्रियारयोको निरतिचार पालमेश्वी “দুখী कोशिश भी किया करता था । यह [अपनी राजदीय विद्यार्योका भी पूर्ण जानकार था । इसकी बुद्धि जिसप्रकार सूये अपने उद्यसे दिशायोंको प्रकाशित करता है उसीप्रकार _ समस्त विद्यार्योंको प्रकाशित करती थी । इसमे नन्नता भी 'खूब थी। इसे अपने चरणोम नमते ये सामतो देखकर 'उतनी खुशी न होती थी जिवनी कि जगतक़े एक हित्‌ सध 'साधुओंके चरणोंम नमते हुये अपने देखए आसद्‌ 'होता था । ; इसभकार गजाओकति योग्य नाना शुर्णोसे पूषिह यजा चः द्धशेखरफे मदनसुदरी नामकी पटरानी थी। यह समस्त रू सारफी सियो अनुपम सुंदरी ओर बुद्धिमती थी। इसके उ- न्पमातीत सद्यो देखकर कस्पनाचतुर कविगण तोः यद तक्र अनुमान কমার শ্রী জি টুজাঁমনমে जो निपेपग्हित नेवी है वे इसीके रूपको देखकर आश्र्यसे,अंखि फाडे ही रह जा- नक्षि कारण हैं) अपने पतिके समान यह হালী भी अप्र्िद- तूप धर्मका पालन और इंद्रियसुखका भोग करती थी । ८- 'सक्के हृदयम [वक्षस्थरूम | जिसप्रकार निर्मेल्ल बहुमूल्य मोतिः- योंका शुफिद हार शोमित होता था और डलका पदिरना बड ` उच्चित समझती थी व्सीपकार इसके चितमे सुक्त-स्व स्व रूपमे स्थित आत्माओंके ध्यानसे निर्में् शु्णोले विशिष्ट रूम्यरद- शेन भी शोमितव दावा था ओर उसका घारण करना भी चह उचित ही समद्रतीःथी। ` :




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