जिनदत्त चरित्र | Jindutt - Charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम से . ९.
है! इस चातका ध्याने घना रहता था ओर तदयुसार पाध-
भार्गसे मीत दो धार्मिक श्रियारयोको निरतिचार पालमेश्वी
“দুখী कोशिश भी किया करता था । यह [अपनी राजदीय
विद्यार्योका भी पूर्ण जानकार था । इसकी बुद्धि जिसप्रकार
सूये अपने उद्यसे दिशायोंको प्रकाशित करता है उसीप्रकार _
समस्त विद्यार्योंको प्रकाशित करती थी । इसमे नन्नता भी
'खूब थी। इसे अपने चरणोम नमते ये सामतो देखकर
'उतनी खुशी न होती थी जिवनी कि जगतक़े एक हित् सध
'साधुओंके चरणोंम नमते हुये अपने देखए आसद्
'होता था । ;
इसभकार गजाओकति योग्य नाना शुर्णोसे पूषिह यजा चः
द्धशेखरफे मदनसुदरी नामकी पटरानी थी। यह समस्त रू
सारफी सियो अनुपम सुंदरी ओर बुद्धिमती थी। इसके उ-
न्पमातीत सद्यो देखकर कस्पनाचतुर कविगण तोः यद
तक्र अनुमान কমার শ্রী জি টুজাঁমনমে जो निपेपग्हित नेवी
है वे इसीके रूपको देखकर आश्र्यसे,अंखि फाडे ही रह जा-
नक्षि कारण हैं) अपने पतिके समान यह হালী भी अप्र्िद-
तूप धर्मका पालन और इंद्रियसुखका भोग करती थी । ८-
'सक्के हृदयम [वक्षस्थरूम | जिसप्रकार निर्मेल्ल बहुमूल्य मोतिः-
योंका शुफिद हार शोमित होता था और डलका पदिरना बड `
उच्चित समझती थी व्सीपकार इसके चितमे सुक्त-स्व स्व रूपमे
स्थित आत्माओंके ध्यानसे निर्में् शु्णोले विशिष्ट रूम्यरद-
शेन भी शोमितव दावा था ओर उसका घारण करना भी चह
उचित ही समद्रतीःथी। ` :
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