पद्मचरित | Padmcharit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मचारित
अयोध्याकाण्ड
इकीसवीं सन्धि
[१ ] एक दिन विभोपणने सागरवबुद्धि भ्टारकसे पूछा कि
“जयलक्ष्मीके प्रिय, रावणकी विजय, जीवन और गज्य, कितने
समय तक अविचल रहेगा ।” तब उन्होंने कहा-'सझुनो, मैं बताता हूं,
अयोध्याके रघुवंशमें दशरथ नामका मुख्य राजा होगा, उसके दो
पुत्र घुरंधर धनुधोरी, बासुदेव और वलदेव होंगे, राजा जनककी
कन्याको लेकर, होनेवाले महायुद्धमें रावण उनके द्वारा मारा
जायगा” | यह सुनकर विभीपषण एकदम उत्तेजित हो उठा मानो
घीका घड़ा आगमें पड़ गया हो । उसन कहा--लंकाकी बेल न
सूखे और रावणका मसरण न हो, इसलिए क्यों न में, भयभीषण
दशरथ ओर जनकके सिरोंकों तुड़वा दूँ?। यह जानकर
कलहकारी नारद वधमान नगर पहुँचा। उसने दशरथ और
जनकसे कहा कि आज विभीषण आयगा और तुम दोनोंके सिर
तोड़ देगा । तब, वे दोनों अपनी लेपमयी मूर्ति स्थापित करवा कर
बहाँसे चल दिये। विद्याधर आये और उन्हीं लेपमयी मूर्तियोंके
सिर काटकर ले गये ॥ १-१०॥
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