माहपुराण भाग 4 | Mahapuran Bhag 4

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Mahapuran Bhag 4 by देवेन्द्रकुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आलोचनात्मक मूल्यांकन [17 वापस ला सकता है ) राम ने कहा यदि वह अपना हाथी देता है तो वही इस मित्रता का कारण हो सकता है। राम ने दूत के साथ अपना आदमी भेजा बालि के राजमंत्री ने उससे कहा--राजा बालि हाथी नहीं, असि- प्रहार देगा। दूत ने वापस आकर, कानों को कटु लगनेवाले वे शब्द राम से कहे । राम स्वयं को कठिन स्थिति में पाते हैं, इधर कुआ उधर खाई । लक्ष्मण गौर हनुमान्‌ उस पर चढ़ाई करते हैं । बालि-बध । 26 वीं संधि राम लंका पर चढ़ाई के लिए प्रस्थान' करते हैं। विभीषण रावण को समझाता है। पैना और युद्ध का वर्णन) 77-78 वीं संधि हनुमान्‌ के न लौटने पर राम की चिन्ता । विभीषण उन्हें समझाता है । युद्ध का वर्णन । रावण विभीषण को बुरा-भला कहता है। युद्ध का वर्णन। लक्ष्मण के द्वारा रावण का वध | मंदोदरी का विलाप । विभीषण भी पश्चात्ताप करता ह । उसके अनुसार रावण का एक ही दोष है कि उसने जैनधमं का भदेश न मानते हुए परस्त्री का भपहरण किया । राम रावण का दाह संस्कार करते है । पृष्पदन्त का कयन है कि दूसरे की स्त्री से राग होने पर सभी हलके समक्षे जते हैँ । विभीषण को राजपटु बाँधा जाता है । 79 वीं संधि उसके बाद राम पृथ्वी का परिभ्रमण करते हुए, कोटिशिला पहुँचते हैँ । लक्ष्मण कोटिणिनला उराते हैं। दोनों भाई गंगा के किनारे-किनारे चलते हैं और उसके उद्गम स्थान पर पहुँचते हैं। वहां उन्होंने पटमंडप ताने | लक्ष्मण ने समुद्रपर्यन्त अपना रथ हाँका | वे मगछ देश आए । वहाँ उनका भभिषेक किया गया । और भी कई कीमती वस्तुएँ उपहार स्वरुप प्राप्त हुईं । समुद्र के किना रे-किनारे जाकर वरतनु को, फिर सिंधु को जीतकर प्रभास तीथे को जीता। फिर स्लेच्छ दिशा के समस्त शत्रुओं को जीता । विजयाघे की दोनों श्रेणियों को जीत कर, हतमातंग विद्याधर की कन्याएँ ग्रहण की । देव दिशा के म्लेच्छ खंड को जीतकर, भूमिमंडल पर अपना राजदंड धुमाकर वे अयोध्या लौट आए। वहाँ राजा राम लक्ष्मण का अभिषेक हुआ । वे दोनों इन्द्र की लीला करते हुए रहने लगे । उन्हीं दिनों शिवगुप्त मुनि का नंदनवन में आगमन होता है। वे जैनधम का उपदेश देते हैं । जैन दृष्टिकोण से वे संसारचक्र का विचार करते हैं, दुसरे दार्शनिक के मतों का खंडन भी । उपदेश सुन- कर राम श्रावक ब्रत धारण कर लेते हैं। लक्ष्मण ने एक भी ब्रत ग्रहण नहीं किया । दशरथ के मरने पर भरत और शत्रुघ्न साकेत में अधिष्ठित हुए । राम और लक्ष्मण वाराणसी गए। राम का पुत्र विजय राम हुआ, उनके सात पुत्र और हुए । लक्ष्मण का पुत्र पृथ्वीचन्द्र था। उसके और भी पुत्र हुए। बहुत समय बीतने पर पृथ्वी पर अनिष्ट लक्षण प्रकट हुए। राम ने दान दिया और जिन पूजा की । लक्ष्मण की मृत्यु। राम और सीता का शोक | राम ने चार घातिया कर्मों का नाश किया, देवताओं ने पुष्पों की वृष्टि की। राम को केवलज्ञान प्राप्त हुमा । परमार्थवादी लोग यही कहते ह कि धन किसी के साथ नहीं जाता । धरती रूपी राक्षसी ने किस- किस को नहीं खाया ! रामकथा की पृष्ठभूमि | पुष्पदन्त की रामकथा में कथा कम, काभ्य-तत्त्व अधिक है । कवि मनुष्य की भौतिक इच्छाओं की निस्सा रता, तप-त्याग और नैतिक मूल्यों का चित्रण तत्कालीन सामन्तवादी पृष्ठभूमि में करता है। जीव का अपना कर्म ही उसके सुल्च.दुःख, बत्धन और मोक्ष के लिए उत्तरदायी है। चूँकि कर्म का कर्ता और




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