नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagaripracharini Patrika Vol. 9, Ank. 1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
500
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समुद्रगुप्र क पाषाशाख ५
पावों के बीच के पत्थर में चिपकी हुई बनाई गई थी । इन बातों
में यह काशीवाले घेड़े से मिलता है। इसके दे।नें कान नहीं हैं ।
उनके स्थलों पर कुछ उँचाइयाँ प्रतीत होती हैं जे। क्कीरों से घिरी
हुई हैं। ये कानों की प्रतिनिधि बनाई हुई जान पड़ती हैं। घोड़े
की बनावट भद्दी तथा आकृज्षि शोकाकुल सी है जे कि किसी आपत्ति-
प्रस्त प्राणी के लिये समुचित है । इसकी पीठ पर कुछ चित्रकारी सी
बनी हुई है। ब्रीचों बीच लंबान बल में एक बेल सी खुदी ई
जिसके देनें सिरों पर चक्र की आकृतियाँ बनी हैं। इनके अतिरिक्त
बेल के ऊपर तथा नीचे कुछ आर रेखाएं भी हैं। इस लेख দ্ধ
साथ पहला चित्र उक्त घोड़े का है और दूसरा उसकी पीठ पर की
चित्रकारी की थपुआ-छापै का ।
घोड़ा ते मैंने देखा, पर उसकी ग्रोवा पर के खेडित लेख को
स्वयं परीक्षा करने की अभिलाषा पूरी न हो! सकी | ग्रावा क॑ देनों
पाश्वों में से एक पर भी किसी अक्षर का कुछ पता न चला |
कुछ भ्रव्यवर्थित रेखाएं तथा छोटे-मोटे गढ़े अवश्य देोनां ओर
पर वे अकुशल शिल्पी फो टांको क चिह्ृ भी कहे जा सकते
हैं। उक्त संग्रहालय के अध्यक्ष ( 007४०) राय प्रयागदयाल
साहब से ज्ञात हुआ कि कुछ चर्षों पहले उस पर कुछ चिह्र पुरानं
अक्तरों से मिल्ञते-जुल़ते वतमान थे.। थपुआ-छाप उठाने से दे।
एक कह कुछ अक्षरों क॑ रूप के प्रतीत भी हुए पर उनसे कुछ
काम न निकर्त्त सका |
यद्यपि प्रीवास्थ लेख के देखने की कामना ते वेसी ही रह गई
पर मेरी लखनऊ-यात्रौं का श्रम निष्फल, न हुआ। उक्त घोड़े की पीठ
पर जो चित्रकारी खुदी हुई है श.्लौेर जिसका डाक्टर फ्यूहर महोदय
ने कवल आवरण की चित्रकारी समझकर छोड़ दिया था ओर यही
अथवा ऐसा ही कुछ मानकर श्री विसे ट स्मिथ महाशय ने भी जिसके
विषय में कुद नहीं कष्टा तथा भ्रन्य लेखज्ञों ने भी उक्त महाशयों के
मतानुस।र श्रब तक जिसके चित्रकारी ही जान रखा है, उस पर
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