संत विनोबा की आनन्द यात्रा | Sant Vinoba Ki Anand Yatra

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Sant Vinoba Ki Anand Yatra by सुरेश रामभाई - Suresh Rambhai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ सन्त विनोबा की आनन्द-यात्रा का पेशा लिया हो, चादे सिपाही का पेशा लिया हो, हम दोनों युद्ध के गुनहगार हैं । “यह मिसाल इसलिए, दी कि हम सिफ दया का कार्य करते हैं, इस- लिए यह नहीं समकना चाहिए, कि हम दया का राज्य बना सकेंगे । राज्य तो निठुरता का है। उसके श्रन्दर दया, रोटी के अन्दर नमक जैसी रुचि पैदा करने का काम करती है। जख्मी सिपाहियो की उस सेवा से हिंसा में लजत पैदा होती है, युद्ध में रुचि पैदा होती है, परत युद्ध की समाप्ति उस दया से नहीं हो सकती | श्रगर हम लोग इस तरह को दया का काम करे कि निद्रता के राव्य में टया प्रजा के नाते रदे, नियता गरी हुकूमत में दया चले, तो हमने अपना असली काम नहीं किया | इस तरह जो काम दया के दीख पडते है, जो काम रचनात्मक मी दीख पडते हैं, उन्हें हम दया और स्वना के लोभ से व्यापक दृष्टि के बिना ही उठा लें, तो कुछ तो सेवा हमसे वनेगी । पर वह सेवा नहीं बनेगी, जिसकी जिम्मे- वारी हम पर है और जिसे हमने अ्रपना ख्वूधर्म माना है। *““*“* ४“इसलिए दस्डशक्ति स्रे मिन्न में जनशक्ति निर्माण करना चाहता हूँ | श्रौर हमें वह निर्माण करनी चाहिए | यह जो जनशक्ति हम निर्माण करना ` चाहते हैं, वह दण्डशक्ति की विरोधी है, ऐसा मैं नहीं कहता | वह हिमा ` की विरोधी है | लेकिन मैं इतना ही कहता हूँ कि वह द्डशक्ति से मिम है । जनशक्ति-निर्माण के दो साधन | “इस दृष्टि से यदि सोचेंगे तो सहज ही ध्यान में आयेगा कि हमारी कार्य-पद्धति के दो अ्श होंगे। एक अश होगा, विचार-शासन और दूसग अश होगा, क्तृत्व-विभाजन | “विचार-शासन यानी विचार समझाना और विचार समकना--विना .. विचार सममे किसी बात को कबूल न करना, बिना विचार समझे अगर कोई हमारी वात कबूह्न कर लेता है तो दुःखी होना, अपनी इच्छा दूसरों पर न लादना, वेति केवल विचार समभाकर दी सतुष्ट रहना ] हमारी




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