श्री जिन गुरु गुण सचित्र पुष्प माला | Shri Jin Guru Gunasachitrapushpmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चित्र न, ४ के जाप दान पर रे है यह श्री मद्रावनी मेदाण्यां पानाय | आचीन काल में दस स्थान मा माम मठायती ही था, ऐसा ऐनिद्वसिर भरमाणो ते मनीन हेता दै मदमार तथा तमिनी अ्याखार म मी मद्रावनी तीय का उल्स শালা ই। ক্যা ইহা ঈ জন ভসাহ मासै की रापती শী एजदन्या व्यारी गद थी | गॉव से मील भर के पासले पर एफ पशडा है उसमें एफ दूसरे से मिली हुई तीन गुफाएँ है । गुपाआ की दियाल में तीर्मा तरप' तीन पश्मासनम्ध सात फुट के ऊँचाई मे उडी -वडी मूर्निा उन्दीण ६। यदे ए प्राचीन गुणा ह । इसे वक्तामन की गुफा कदते हे। इस्पी सन ६२९ से ६३९ तक मध्यप्रदेश বানিহীবগ करने थाटे चीनी श्रयासी तिशन इतेनलाग ने जि्पा गि मद्रायती का गज क्षत्रिय था। वह অলন্ন বিশ্বাশী, कलप्रेमी, थ परमप्रामिक था। पड़ पड़ मंदिर व विद्यालय थ। श्राचीन भम्मायशेपों से निकलने थाली सामग्री से शात होता हे कि मद एक समय में पट भारी नगर था, मिसे स्मृति तरि पुरातम मन्कनि की साज मी याद्‌ दिलत ई । व पर মাল, বান, আপি? যাগ ত্য আনি ক পঞ্থান্‌ মাহ যআানী ने राज्य सिया था। अन्त में भासला ने भा शासन क्या था] जन्तसि पनाय तीव मे तैनेनर श्रीमान्‌ चतुसुत मार को वरणेन देव खेप्रदेत दपि विच्छेद भू्रायती धीय वौ प्रम करण्डारभ्ये। ये मी स्वम्नानुसार प्र प्रन में घुमते है। अन्त मे नागेन्द्र তার হী ত थी पराश्चनाय के दशा उरात हैं फिर चाँदा, वतरा, नागपुर आदि কী মলা পালন इस काय॑ को हाथ म लेपर तीथ का उद्घधार करत हैं। হী पर २२०० वपं की प्राचीन प्रगट ममावी ती पाशपरयु दी धरण कै फणाना से युन ६० ईच की यद मूल नायर प्रतिमा दै मिसे दन कर वाथ আনম कल्याण मे तत्पर हो নালা में तलीन हो जाता है | বাবর যহৃ বাঁধ মার মং ঈরিবযার व लासो सपय दस तीयपर्‌ख्ग र्दे है इसका अधिक नेय चांदा नियाती श्रीमान्‌ बैनकरणजी गोलेच्छा भद्रायती तीव कमेटी ये समापति को है|




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