इन्दुमती | Indumati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
447
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ठ इन्दुमती
है जब जीवन की बहुत सी रोधी जीवन पर सेन्बह चुकती है, और
जीवन मे एक प्रकार की शान्ति आ जाती है। ऐसी शान्ति जो
शिथिलता से रहित होती हैं। श्रभी भी आप बहुत से अच्छे कार्य
कर सकती है ।”
इन्दुमती उस गाँव में एक प्रसूति-आलय बनवाती है जहाँ वह त्रिलोकी-
नाथ के साथ पहले गयी थी। उसने उसमे स्वय सक्रिय सेवा का कार्य भी
किया। धीरे-धीरे उसने गाँव को आदर्श बना दिया । गाँव स्वच्छ है। उसमे
एक स्कूल है जहाँ लड़के-लडकियों को नैतिकता का पाठ पढाया जाता है,
और अच्छी लाभप्रद बाते बतायी जाती है। पुस्तकालय है, साप्ताहिक सभां
होती है जिनमे समाचारपत्र पढे जाते है और नयी घटनाओं पर विचार-
विनिमय होता है। चिकित्साशाला (अस्पताल) है। एक आदर्श गोशाला
(डरी फामं) श्रौर छृष्ि-क्षेत्र है। पचायत है जो यदाकदा होनेवाले श्रापसी फगडो
का निपटारा करती हैं। सहकारिता के आधार पर खेती होती है । श्रनेक
घरेलू उद्योग है, जिनके कारण ग्रामवासी न केवल समृद्धि प्राप्त करते है
वरन् आत्मनिर्भर भी हो जाते है और सब प्रकार की सार्वजनिक सेवा के लिए
एक स्वयसेवक दल है। गाँव की प्रसिद्धि दूर-द्र तक होती है। श्रनुकरण
आरम्भ होता है | दूर-दूर तक इस गाँव की कीति फली थी और कई स्थानो
मे इसके अनुसरण का प्रयत्न हो रहा था। १५ और १६ अगस्त, १६४७ के
बीच की रात को भारत मे स्व॒राज्य की स्थापना होती है, पर भारत के तीन
खण्ड कर दिये जाते है। भारत, पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान । देश
मे विभाजन कै पूवं श्रौर अ्रनन्तर भयकर रक््तपात होता है। किन्तु इन्दुमती
प्रौर त्रिलोकीनाथ बराबर अपने मार्ग पर चलते रहते है। जब भी सम्भव होता
है, पीडितो की सहायता करते दै । सन्तुष्ट श्रौर निरासक्त, स्थिर मन से सब
कुछ सहन करने को तयार रहते है ।
उपन्यास की समाप्ति, योगमूत्र के सन्तोषाद् श्रनुत्तम सुखलाभ “, झ० २
सूत्र ४२ : और गीता के “यो লা पश्यति सवत्र, सवं च मयि पश्यति ; सवं
भूत हिके रतः , कर्मण्येवाधिकारस्ते रादि उपदेशो के साथ होती है । इन्दुमती
के मन में अब भी तरह-तरह के प्रश्न उठते है । देव और पुरुषकार, स्वतन्त्र
प्रयत्त और भाग्य,---जीवन का उद्देश्य आदि के सम्बन्ध मे और इस जगत
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