आयुर्वेद महत्व | Aayurved Mahatwa
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.36 MB
कुल पष्ठ :
295
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर ) श्यायुचंद-महत्त्व
शब्द को समझ लीजिये । चरक ने इन तन्माघाओं का जेसा
वन किया हे; वेसा शायद दी संसार में कहीं मिले 1
कड़चे रस का वचन इस कुनेल के प्रकरण मे करेंगे । सब
चयात जानना हो ता चरक पाढ़ये ।॥
इस्त प्रकार इन णुणों के द्वारा स्थूल द्रव्यों का पद्दचानना
खुगम तो झचश्य है ! रस, युण, चीये, वविपाफ को चुत
कुछ पता भी इससे लग जायगा, परन्तु इनके ्तिरिक्ञ एक
चस्तु प्रभाव भी है । वहाँ तन्याचा्ो का इतना ज्ञान काफ़ी
नहीं हे । चस्तु के वीयें का थी समस्त ज्ञान इतने से नहीं हो
सकता श्र प्रभाव की तो वात ही श्रोर है । दो चस्तुआओं के
मेल से जो तीसशी वस्तु दनती है उसके असर को प्रभाव
कहते हूं । यह चड़ा कठिन मागे है । इसका झन्त पाना
ासम्सव हे । चरक ने तो यहीं तक कद हे कि जज्नली
मनुष्यों, सीख, सोएँ: और चकरियाँ चरानेवालों से भी
आओपाधि का प्रभाव पूछुकर उसकी परीक्षा शास्त्राजुसार
करनी चाहिये । इस प्रसाव की पदचान इन तन्माचाद्ं के
ज्ञान से पूरी नहीं हो सकती थी ।
इसलिये वेदों ओर ऋषियों ने इन पश्चतन्माचाओं में
घ्यौर थी सूब्म तत्व दूढ़ निकाले । यद्यपि तन्माजाओं से
ही समस्त र्थूल जगत् वचन हें; परन्तु झनन्त भेदा स िभक्क
हि,
है। एक एक करके जानना चाहे तो इज़ार जन्मों से भी
कसी सष्टि का झन्त नहीं पा सकता, तथापि कुछ गण ऐसे
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हैं जो इन तन्माचाओ से लेकर मोटी से सोटी वस्तु मे भी
तराचर विद्यमान रहते हैं । उनसे खाली कोई' नहीं । उन्दीं
हु. ३ ह«.
गुणों के द्वारा पश्चतन्माताओं में विद्यमान उन सूक्ष्म तत्वों
का पता लग सकता है जिनसे प्रक्धाति का कोई भी परमारणु
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