आयुर्वेद महत्व | Aayurved Mahatwa

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Aayurved Mahatwa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर ) श्यायुचंद-महत्त्व शब्द को समझ लीजिये । चरक ने इन तन्माघाओं का जेसा वन किया हे; वेसा शायद दी संसार में कहीं मिले 1 कड़चे रस का वचन इस कुनेल के प्रकरण मे करेंगे । सब चयात जानना हो ता चरक पाढ़ये ।॥ इस्त प्रकार इन णुणों के द्वारा स्थूल द्रव्यों का पद्दचानना खुगम तो झचश्य है ! रस, युण, चीये, वविपाफ को चुत कुछ पता भी इससे लग जायगा, परन्तु इनके ्तिरिक्ञ एक चस्तु प्रभाव भी है । वहाँ तन्याचा्ो का इतना ज्ञान काफ़ी नहीं हे । चस्तु के वीयें का थी समस्त ज्ञान इतने से नहीं हो सकता श्र प्रभाव की तो वात ही श्रोर है । दो चस्तुआओं के मेल से जो तीसशी वस्तु दनती है उसके असर को प्रभाव कहते हूं । यह चड़ा कठिन मागे है । इसका झन्त पाना ासम्सव हे । चरक ने तो यहीं तक कद हे कि जज्नली मनुष्यों, सीख, सोएँ: और चकरियाँ चरानेवालों से भी आओपाधि का प्रभाव पूछुकर उसकी परीक्षा शास्त्राजुसार करनी चाहिये । इस प्रसाव की पदचान इन तन्माचाद्ं के ज्ञान से पूरी नहीं हो सकती थी । इसलिये वेदों ओर ऋषियों ने इन पश्चतन्माचाओं में घ्यौर थी सूब्म तत्व दूढ़ निकाले । यद्यपि तन्माजाओं से ही समस्त र्थूल जगत्‌ वचन हें; परन्तु झनन्त भेदा स िभक्क हि, है। एक एक करके जानना चाहे तो इज़ार जन्मों से भी कसी सष्टि का झन्त नहीं पा सकता, तथापि कुछ गण ऐसे 22 हैं जो इन तन्माचाओ से लेकर मोटी से सोटी वस्तु मे भी तराचर विद्यमान रहते हैं । उनसे खाली कोई' नहीं । उन्दीं हु. ३ ह«. गुणों के द्वारा पश्चतन्माताओं में विद्यमान उन सूक्ष्म तत्वों का पता लग सकता है जिनसे प्रक्धाति का कोई भी परमारणु




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