दर्शन का प्रयोजन | Darshan Ka Prayojan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्शन का मुख्य प्रयोजन ३ जब तक मनुष्य किसी एक विप्र शाख को जान कर इस मिमान में पड़ा है कि जो कुछ जानने की चीज़ है वह सब में जानता हूँ, तब तक, स्पष्ट ही, उस को आत्मविद्या अर्थात दशनशाखत्र का प्रयोजन नहीं । जग्र स्वयं डस के चित्त मे असतोष ओर दुःख उठे, और उस को यद्‌ अनुभव हो कि मेरे विशेष शास्त्र के ज्ञान से मेगा दुःग्ब नहीं सिटता, चित्त शांत नहीं होता, तभी बह इस आत्मदशन का स्वराज करना ह । उपनिषन्‌ के उक्तं वाक्यो पर भाष्य करने हुए शकरानार्य लिखने है #सर्वविजानसाधनशक्तिसंपन्नस्थापि नारदस्य देवपें: श्रेयो न वभूव, उत्तमा- भिजनविद्यावृत्तमाधनशक्तिसपत्तिनिमित्ताभिमान हित्वा प्राकृतपुरुषवत्‌ सनत्कुमार- मुपससाद श्रेय:साधनप्रामये, निरतिशयप्राप्तिसाधनत्वमात्मविद्याया इति |”? देवताओं के ऋषि, वहिमुस्त शास्रों के सर्वज्ष, फरिश्तो मे अफज ल और अल्लामा नारद को भी, ऊँच कुल का, विद्या का, शक्ति का, गव अभिमान छोड़ कर, साधाग्गा दुःखा मनुष्य के ऐसा सिर झुका कर, सनत्कुमार के पास उम अतिम ज्ञान के लिए जाला पढ़ा, जिस से सब दुःखो को जड़ कट जाती है | जिस हृदय में अहंकार अभिमान का राज है उइ८ से उस अंतिम ज्ञान, बेद के अत, बदांत ओर आत्मा का प्रवेश कहां ! खुदी को छोड़ा न दने अरब तक, खुदा को पावेगा कह तू क्‍यों कर ? जवानी गुज़री बुढ़ापा आया, अभी तक ऐ दिल, तू ख़्वाब में है॥ न कोई पर्दा है उस के दर पर, न रूये रौशन नक्राव म है। तू आप अपनी खुदी से, ऐ दिल, हिजाब में है, हिजाब मे है॥॥ यम-नचिकेता की कथा एसी हो बालक नचिकेता की कथा है। उस के पिता न त्रत किया अपनी सब संरपात्त अच्छे कामो के लिए स॒पात्रा को दे दंगा। जब सब बस्तुआ का उठा-उठा फर लोग ले जान लगे, तब छोटे बच्च के मन में भी श्रद्धा पेंटी! । पिता से पूछने लगा, “तात, सुके किस को दीजिएगा ।” एक बेर पूछा, दो बेर पूछा, तीसरा बेर पूछा । थके पिता ने चिंढ़ कर कहा, “मृत्यु को।”? कोमल चित्त का सुकुमार वचा, उस करूर वाक्य से बिहल हो गया । बेहोश होकर 3 ठेठ हिंदी में “इन को भी साथ! गीः, गर्भवती स्त्रियों के त्िए 'साथ' र्यात्‌ उन की ष्ट वस्तु मेनना, “जो 'सर्धा' .होय तो दान दो”, यद्द दो रूप श्रद्धा के देख पढ़ते हैं ।




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