बहुजन समाज | Bahujan Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर बलात्कार की घटनाएँ बढ रही थी। महिलाओ की इज्जत स छडछाड का अथ उसकी जाति के पुरुषो की अस्मिता पर चोट। इसलिए दलित महिलाओ पर वार किया जाता था। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु राज्य के तजार जिल के फिलयनमणि ग्राम म दिसबर, 1969 मे सवण-जाति के लोगा ने 42 दलित मजदूरा का जिनम अधिकाश महिलाएँ व बच्चे थे, जिदा जला दिया था। गुजरात क॑ रणमलपुग गाँव म स्यर्णो के कु#एँ से पानी लेन का प्रयास कर रहे दलिता को मारा-पीटा गया । उनकी झापडियों जला दी गइ। आश् प्रदेश के काचिका-चरला गाँव म एक दलित लड़के को खभे से बाधकर, मिट्टी का तेल छिडक, जिदा जला दिया गया । उत्तर प्रदेश मे बाक्यर पुलिस स्टेशन के इचाज ने तो हेयानियत से भी आगे का कुकृत्य कर डाला । उसने रामचरन नाम के दलित मजदूर के घर दोड डाली तथा उसकी अधेड पत्नी व किशोर पुत्र को लाखना कस्बे के चेयरमेन के घर ले गया। वहाँ उन दानो का नगा किया गया तथा माँ को जमीन पर लिटा कर पुत्र को उससे बलात्कार करन पर मजबूर किया गया। बिहार के सहरसा जिले के मधुबनी गाँव मे सवण जाति का बारह वर्षीय लडका साप के काटने से मर गया था । लड़के के अधविश्वासी परिवार ने समझा कि दलित जाति की एक महिला ने जादू-टोन॑ स उसे मार दिया। बस क्या था, उस महिला के परिवार की चार महिलाओ को सावजनिक रूप से गाँव मे नगा कर उन्हे मारा-पीटा गया ओर मृतक लड़के को जिदा करने के लिए कहा। बाद मे लोहे की सलाखो को गम कर चारो महिलाओ के हाथ-पैर व गुप्तागो को दागा गया। उत्तर प्रदेश के एक जिला केद्र पर अगस्त, 1973 मे, मदिर मे एक पुलिस इस्पेक्टर ने दलित महिला के साथ बलात्कार किया यही नही देश की राजधानी मे भी दुव्यवहार की घटना हुई । दिल्‍ली के बापा नगर मुहल्ले की प्रेमलता नाम की दलित छात्रा ने अपनी प्रधानाध्यापिका द्वारा “कृष्ण जन्माष्टमी” का प्रसाद फेक देने पर किए गए अपमान स्वरूप मे छलाग लगाकर आत्महत्या कर ली। बाद मे इसी घटना को लेकर कई दिनो तक दलित समाज द्वारा आदोलन किया गया था। विदर्भ मे गवई बधुओ की आँखे निकाल ली गई। महाराष्ट्र के ही बावडा या ब्राह्मण गाँव मे बौद्धो पर जो अन्याय हुआ, उससे आक्रोशमय हुए उन्ही लोगो की बस्ती वाले लेबर कैप (माटुगा) के दो युवको ने ही प्रथम विधान सभा मे आग बरसाई। उस समय मराठी दलित लेखक राजा ढाले ने कहा था-“*किसी महिला की इज्जत से किसी राष्ट्रध्यज के कपडें का सम्मान कैसे अधिक हो सकता है? अगर महिलाओ के कपडे फटते रहे तो हमें राष्ट्रध्यज से क्या लेना?” दलित उत्पीडन की यह घटनाएँ इस बात का सबूत रही थी कि जहा दलितों बामसेफ से पूव दलित समाज की सामाजिक तथा राजनैतिक स्थिति / 13




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