श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimad Bhagwat Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शी} ६.६ भौमदधगवहीता কাট
फिर हे भगवन् ! तुमने जो मुझे अध्यात्म, अधिभूत भौरे भ्रधियज्ञका
उपदेश किया ( देखो अ० ८ ) तथा देवयान और पितृथान इत्यादि
सा्गोका उपदेश किया (देखो अ० ८ श्लो० २४ से ३६ तक) भर
हे भगवन् ! जो तुमने मुझे गुल्मतम राजविद्याका उपदेश किया ( देखो
आ० ६ )फिर है भगवत् | मेरे इस प्रश्नपर, कि ^“ ककतु-
: महेस्यशेपेण दिव्या ह्यात्मविश्वतयः” तुम अपनी विभूतियोको मुभे
पूर्णरूपसे कहे! तिसके उत्तरमें तुमने “ अहमात्सा गुडाकेश ?”
६६ विष्टभ्याहमिदं ऊत्मंस 7 ( अ० १० रलो ०२०सैष् र तकर )
इंद्यादि. बचनोंतक अपनी दिव्य विभृतियोंका उपदेश किया ।
अब अज्जन कहता है, कि [ साहात्म्यसपि चाव्ययम्त ]
तुमने अपने' अव्यय माहात्यको धर्थात् अक्षय महा देश््यौका वर्णन
. किया है सो मैने विस्तारपूवेक श्रवण किया ।
शंका--- भगवानूने तो अपने मुखारविन्दसे कहा है, कि हे
प्रजन | मेंने अपने महान ऐश्वय्थॉको तुकसे अत्यन्त संक्षिप्तकरके
'कहा है क्योंकि भगवान् अ० १० के अन्तमें अ्जुनसे कहचुके
४ एब तुदेशतः प्रोक्त: ” ( अ० १० श्लो० ४० ) अर्थात् मैंने
ध्पनी विभृतियोंके विस्तारके कारण संक्षेपकरके तुकसे कहा ओर इस
शलोकमें अजुन कहता है, कि “श्रुत्तो विस्तरशों मया” मेंने विस्तारपूवक
ন্তুলা। तोकहनेवाला कहता है, कि मेंने संच्तेपसे कहा ओर सुनने वाला
. कहता है, कि मैंने विस्तारस सुना ये दोनों बातें पररपर टकराती
. हैं और इनसे गीताशाखमें अन्योन्य विरोधका दोष लगता है ऐसा क्यों !
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