सकडालपुत्र श्रावक | Sakdalputra Srawak
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९ सकडालपुत्नश्रावक
दूसरा-अविश्वासरूप-संशय, आत्मा का पतन कर देता दै।
ऐसे संशय के लिये कहा है--
संशयात्मा त्रिनश्यापि
“হা বী, জাংলা का विनाद्च हौ जाता है 1“
प्रमाद् में, इसी संशय की गणना है और इसो संशय से कमे-
बन्ध होता है । धरम की किसी बात के विषय में, संशय करना
ओर उस संशय को नहीं मिटाना-हृदय में रहने देना-धमै पर
अविश्वास उत्पन्न करता है ओर घमे पर अविश्वास होना, कमे-
बन्ध का दहैतु है ।
सकडालपुत्र ने, गौशालक फे मत के विषय मे, सन्देह कर
करके सब शंकाएँ निवारण कर ली थीं, तथा उस मत को शुद्ध
रूप से शअपने हृदय में स्थान दिया था | वह, आजीविक सत को
ही धमं अर्थे एवम् परमाथ थानता था, शेष सवको अनर्थं कहता
था)
फिसो विपय में संशय तभी दो सकता है, जब, उस विषय
का मनन किया जवि 1 उस विषय पर विचार किए विना-उसको
जाने विना-शंका हो तो किस पर और केसे ? उदाहरण के
लिये, एक मूर्ख आदमी के द्वाथ में पुस्तक देकर उससे पूछा
जावे कि इस पुस्तक फे विषय में क्या सन्देह हे ? तो इस प्रश्न
के उत्तर में वह अधिक-से-अधिक यही कह सकता है, कि-मुमे
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