जीवत की कहानियां | Jivat Ki Kahaniyan
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बर्फकी चकाचौंवसे बिलकुल अंधा हो गया । बाकी तौनोंकी हालत
भी बिलकुल मरणासन्न थी ।
सातवें पड़ावमें ठहर जानेवाले आरोहियो और कुलियोका तीन হিল
तक कोई समाचार नहीं मिला | १४ जुलाईको अंगसेरिंग नामक पोर्टर
मृत्युसे युद्ध करता हुआ चोथे पड़ावतक आया । उसने छुठे पड़ावसे
चैंथि पड़ावतकका कठिन मार्ग अकेले ही तय (कया था ओर उस
दशाम जव उसे पूरे सात दिनसे भोजनके दर्शनतक न इए थे ।
उसके साहस चोर जीवटकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।
अंगसेरिंगसे माछ्म हुआ कि १२ जुलाईकों सातवे पडावमें वेलजन-
बेचकी मृत्यु हो गई और एक पोर्टर, आठवों पड़ाव छोड़नेसे पहले
ही मर गया था | मरकल, गेले और एक कुली बड़ी कठिनाईसे
छुठे पड़ावतक पहुँच पाये और बर्फकी खोहमें अपने शरीरोंको
गरम रखनेके लिए ,एक दूसरेसे चिपटे पड़े रहे | इन तौीनोंको भी
एक सप्ताह तक भोजन न मिला था । बादमें इनकी भी मृत्यु हो
गई । अंगसेरिंगने लगातार कई दिनोंतक हर मरकलकी जिस तरह
मदद की ओर एक सप्ताहतक भूखे रहकर असीम कष्टोंकों सहते हुए,
दलके नेताकों सहायता भिजवानेके लिए चोथे पड़ावतक पहुँचकर,
उसने जिस साहस ओर जीवटका परिचय दिया वह पर्वतासेहणके
इतिहापमे श्रभूतपूवे समभा जायगा । हिमालय-परारोहणके ,इतिहासमें
इतना जबरदस्त बलि-ग्रदान होनेका यह पहला मोका था ¡ १९३७
के रोही दलको भी १९३४ के दलके समान घोर कठिनाइयोका
सामना करना पडा | चार पडाव स्थापित कर चुकनेके बाद सब्र पड़ाव
उड़ गये और उन्हें फिरसे स्थापित करना पडा | दुबारा स्थापित
करनेके बाद जब यात्री लोग आगे बढ़े तो फिर ऋतु-विपर्ययका सामना
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