भारत निर्माता भाग - १ | Bharat-nirmata-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 च है जाते हैं। सबसे महत््वपपूण और उल्लेखनीय वात तो यह है कि ऋषियों में अनेक महिलाओं के भी नाम आए हैं । सुप्रसिद्ध देवीसक्त की रचयिता वाक्‌ नामक महिला ऋषि ही थी, जो अश्रण ऋषि की पुत्री बताई गई है। अन्य चैदिककालीन प्रतिभाशालिनी स्त्रियों में विश्वाचारा, इंद्रसेता सुदूगलानी, लोपा- मुद्रा, श्रद्धा ओर घोषा के नाम उल्लेखनीय हैं । ऋग्वेद संहिता जहाँ संपूर्ण पद्य में है. यजुर्वेद उसके विपरीत लगभग सासा गय सें है। यह आकार मे ऋग्वेदे का लगभग दो-तिहाई होगा ओर इसे प्रधानतः यज्ञो कै उपयोग में आनेचाले भंत्रो तथा उत्तके प्रयोग के समय काम में लायी जानेवाली विधि ओर क्रिया-कलाप का वरन है । यह विधि जिन गद्य-वाक्यों में चर्णित है, वे यजुप्‌ कहलाते हैं।। कहते है, इस बेद की अनेक संहिताएँ: थी--अकेले महाभाष्यकार पतंजलि ही ने इसकी १०९ शाखाओं का उल्लेख किया है। किन्तु आज दिन पार-मेद के अलुसार हमें निम्न पॉच यजुवंदीय संहिताओं के ही नाम शात ह--काठक संहिता, कापिप्ठल-कठ संहिता, मेत्रायणी संहिता, तेत्तिरीय संहिता, और वाजसनेयी संहिता । इनमें पहली चार एक दूसरे से वहुत-कुछ मिलती-जुलती ओर संवंधित हैं, तथा प्ण यजुवद के नाम से पुकारी ज्ञाती है। इनमें भी वेत्तिरीय संहिता ही सबसे अधिक प्रसिद्ध ओर मान्य है| सबसे अंतिम चाज- सनेयी या शुक्ल यजुर्यद संहिता शेप चारो ही से निराली है। कहते है, अपने गुरु वेशम्पायन से ( जो रूप्ण यजुर्चद में प्रतिपादित विधि के समर्थक थे ) अनवन हो जाने पर प्रतिभाशाली याज्ञवल्क्य ने इस नवीन संहिता की रचना की थी | सामवेद संहिता यद्यपि ऋग्वेद के ही मंत्रों को लेकर बनाई गई है, किन्तु उसकी एक चिशेपता यह है कि वह गीतात्मक है 1 पुराणों के अनुसार सामवेद की लगभग हज़ार संहिताएँ थी, किन्तु आज दिन राणायनीय, कोौधुमस ओर जेमिनीय ये तीन ही हमें छात है। इसमें कोथुमस संहिता सबसे प्रसिद्ध है। इस वेद से संकलित सास यक्षो के समय उद्गाता नामक ऋत्विज्‌ द्वस माए जाते चे । यौथा श्रथर्थवद ययपि युत दिनो तक षेद में नहीं गिना जाता रहा ओर इसका संकलन भी वाद 5 টু हा 7 11 ২৮ হিলারি এ রি নি লি तु ¢ ४ স্পা में हुआ, फिर भी उसके कई सक्तं ऋग्वेद जितने ही प्राचीन हैं । प्राचीनकाल में इसे 'अथर्षोड़िरस- कहकर एकारते धे ! यह येद गद्य-पद्य मिश्रित है ओर, इससें प्रधानतः मंत्र-तंत्र, अभिचार, आदि की भरमार है, जिन पर अनेक विद्वान अनाय्य प्रभाव भी देखते हैं । किन्तु इसके कई अंश--विशेषकर पंद्रहयों खण्ड--उच्च तत्वशानसचक भी है। ऐति- हासिक छानवीन के लिए यह्‌ वेद बड़ा महत्त्वपूर्ण है। यह तो हुआ चेद के सुख्य भाग या संहिताओ का अति संज्ञिपत परिचय | इसके याद चह अंश आता है जो वेदों के व्याख्या-भाग या লাক্স? के नाम से प्रसिद्ध है। इन रचनाओं का उद्देश्य यज्ञ-विधि आदि कमंकाएड पर प्रकाश डालना था, अतएव उत्त विधियों के खध्ष्म विश्लेषण और शासत्रार्थ की चारीकियों में पड़कर ये श्र॑थ अत्यंत जटिल हो गए है। ये संपूर्णंतया गद्य में हैं और वंद्कि कमंकारड को समझने तथा उस युग के जीवन की झलक देखने के लिए इनका निस्लंदेह वड़ा महत्त्व है। पर यहाँ हम उनके नाम भर गिता देने के अलावा अधिक परिचय नहीं दे सकते । ऋग्वेद के चार पाह्मण हें--कफौपितकि, ऐतरेय, पेगिरहस्थ, ओर शाट्यायन । रृप्ण यजुर्वंद के भी चार ज्ञाह्मण ईै-तेच्तिरीय, यल्लभी, सत्या- यनी, ओर मैत्रायणी | হাক অন্তু का केचज्ञ पक माह्मण शतपथ है । सामवेद फ सामविधान, मंत्र, आपंय, वश, देवताध्याय, तलवकार, तांडय और संहितोपनिपद्‌ ये श्रार ब्राह्मण माने जाते हैं। अधथर्व- वेद का फेवल एक ही ध्राह्मण गोपथ हे। इनमें रेतरेय, शतपथ, तांडव ओर गोपथ ही सबसे अधिक महत्वपुण माने जाते हैं । प्राह्मणों का सबसे अधिक महत्त्व इस হান हैं कि खुप्रसिद्ध उपनिषद्‌ इन्हीं के अंतिम भाग हैं। ये उपनिपद्‌ ही वेदों में निहित तत्त्व-शान के निचोड़ हैं। एकाध को छोड्कर समस्त उपनिषद्‌ ब्राह्मणो के आरण्यक नामक भागों के अंश हें। यद्यपि इस समय लगभग १०८ उपनिपदो ऊ नाम मिलते हैं, किन्तु उनके सबसे महान भाष्य- कार श्री शंकराचार्य ने फेवल मिम्न १६ उपनिषदों को ही भामाणिक ओर महत्वपूर्ण माना है-- ( ऋग्वेद के ) ऐतरेय ओर कौपितकि; ( र. ९६ रु ५ ৮ |] 1 1 रह ~. के ৮ हु এন < ६ 1.१९ ৫ হস ৪ ৯ মে তপ্ত एक রি: न |




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