हरफन मौला | Harafan Moula

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९१ इरफन मौा इम्याशों घन विवाद करने से नदों दिचक्रियाता तथाजा समाज “निपूते को स्वर्ग नहों हो सकता? इस प्रकार फी ध्य- यम्या देकर प्रत्येक ध्यक्ति को प्रह्मचस्ये-्लएडन के लिये मजबूर फरना है, उस समाज के सदस्य यदि ऐसी स्थिति में दो तो या श्राश्यय्यै १ दर स्थिति चा दूसरा कारण दमा घ्यक्तिगत जीवन द । अहृति ने भनुष्य के लिए कई ऐसे नियम थना दिये हैँ जिनका पालन गरोब और अमोर स्त्री और पुख्प सव कोह फर सकते हैं। प्रहतिगत स्वास्थ्य के ऊपर केबल थ्रमीरों का हो श्रथिकार नहीं है। उनका पालन गरीय से गरीब ध्यक्ति भी फर सकता है श्चीर खस्य, खुन्दर तथा सुद रश सकता है। पर हम भ्रमाद्‌ चश होकर उन नियमो कौ उवेत्ताकरते ई यीर उपेक्षा फरने से जथष्म यौमार হীন । तथ डस बोमारों को दूर फरने पे लिए मूर्ज र्थो फो पना ई श्रएड घएड औपधियां खाकर सारे जोवन षो धरवाद्‌ कर डालते ६ । दम यँ यद धतला देना चादते र कि केवल धाशथिर्यो से कमी भी उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति नदीं दो सकती। भूडे हैं थे लोग जो फेघल औपधियों के द्वारा मनुष्य को स्वस्थ करने का ढिंढोरा पीटते है ऐसे लोगों फे जाल में पड़कर नित्य আলি सैकड़ों लोग अपने जीवन को बरवादी के सांचे में डालते जा रहे है। ओपधियां मनप्य शरोर में से एक घिकार को निकाल कर दूसरे विकार को उत्पन्न करती हैं. ७1 अतणएब जो मदुप्य अपना जीवन स्वाभाविक घनाना चाहते ई उन्हें जहाँ । < ठ इस विषय के विस्तृत ज्ञान के लिए द्ोमियोंवैयों के आवि- ष्ठार टा दानिमान भर दई दूने के प्रन पड़ना चादिषु ।




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