संभावना | Sambhavana

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Sambhavana by रामेश्वरलाल खंडेलवाल - Rameshwarlal Khandelwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संभावना १३ रथापित हो गया। प्राल्ट एलेन ने एक नवीन सूत्र दिया 'सुन्दर वह हैँ जो हमारो प्रन्त.वृत्तियों को अिक से ग्रधिक उत्तेजित करे और जितमे कम-से-कम क्राति और क्षय का प्रमुभव हो 1” इसी के आघार पर रिचई स ने सोन्दर्य्य-मूल्य की परिकल्पना की । रिचई स के भ्रनुमार जिस कृति में जितनी अधिक श्रौर परस्पर मिन अन्नःवृत्तियो का जितना अधिक परितोष करने की क्षमता हो उतना ही उसका कलात्मक मूल्य हैं। इस प्रकार प्रन्त.वृत्तियों वा सामज्जम्य ही वला का मूल्य है। रिचईस ने सोन्दर्य्य बी स्वतन्त्र बल्पना को कोई महत्व नहीं दिया--परन्तु प्रकारातर से उनका यह कलात्मक मूल्य ही गोन्दस्प है । मनोविश्तेषणश्ञास्त्र के प्राचाय फ़रॉयड ने सौन्दस्यं का सीधा सम्वन्ध कामेच्छा या रति-भावषना के साथ माना है। उनसे पहले डादिन और उनके श्रनुयाथी यह स्थापना फर चुके थे कि कामोपयोग के लिए उपयुक्त पात्र के चयन में सौन्दर्य का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। --प्रोर सौर्दस्यं वी चेतना केवल मनुष्य में ही नहीं होती . जव नर पक्षी मादा के सामने अपने पख झौर सुन्दर रगो का प्रदर्शन करता हैं तो इसमे सन्देह को लिए प्रवकाश नहीं रह जाता कि मादा उसके सौन्दर्य्य पर मुग्ध होती ह 1 दम प्रकार मनोविज्ञान मनोविदनेपणशास्व प्रौर जोववरिनान आदि के সমান प्राकृत जीवन की बृत्ति--राय प्रधवा दाम की अभिव्यक्तित एवं परितृष्ति के रुप में सौन्दर्य को परिभाषित क्या ঘা) साहित्य तथा कला के क्षेत्र मे यह मत पुरा बाल से ही माम्य रहा है। आदि काल में प्ररस्तु ने अपने विरेचन सिद्धान्त मे इसको मास्यता प्रदान की थी, लोजाइनस ने भी भावोद्र क को कला का प्राणतत्त्व माना है, स्वच्छन्दतावादो आन्दोलन का मूल प्राधार श्राणों का प्रावेश ही था, दार्शतिको में *म्पिनोज़ा, नीत्शे ध्रौर णोेनहीर ने ओर उधर मानवनावादी साहित्यकार में टॉलस्टाय प्रादि ने भी प्रवल शब्दो मे रागाल्मक प्रमाव की महृत्त्व-प्रतिप्टा की है । शषन्दध्यं वप्तुनिष्ठं है या स्पव्ितिनिष्ठ ? उपयुक्त विवेचन के सदर्भ में यह प्रदन भनायाय ही उठता है कि मौन्द्यं वेष्तुनिष्ट है या ब्यक्ितिनिष्ठ पर्थात्‌ सौन्दस्यं वस्तु का गुण है प्थवा द्रष्टाया भावक की प्रतीति। सामास्यत वस्तु के धुण होते हैं धाकार-प्रशार की सरचना, रग, दीप्ति प्रादि। रूपवादी सौन्दस्य॑-चितकों का मत हैं कि सरघता मे इन तत्वों बी समन्विति में ही सौम्दम्यं निहित है--सरचना हे तत्वों वी यह मसमन्विति हो उनके मन से सौन्दय्यं है । इसके विपरीत ग्लात्मवादियों का विचार है कि सौस्दस्पं वास्तव में चेतना यथा प्रतीति-रूप है, वस्तु-रूप नहो हूँ । सरचना वो समस्दिति उने भरी मान्य है, ॥ হি रिसेन्ट धोक मेंद--भाव १, ररिच्छेड २। * दी हिज्ञाइर शदित विषा्ज इट इज बुष्द, इट इट इज धुष्ट प्रोनलो दिदाज दो हिमाइर इश । (বি জিত আদ ब्यूटो (१६६१) छेंटावना पृ० २२




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