राजस्थानी साहित्य का आदि काल | Rajasthani Sahitya Ka Adi Kal

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Rajasthani Sahitya Ka Adi Kal by नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परम्परा है रेप गुग्नार वह सेस गु्नार कहल गुदारं सुन्दर डाक गुद्नार इत्यादि वा उत्लेंस मिलता है। इस सग्रह में ब्राह्मण क्षत्रिय वैद्य तथा घूद्ो के प्रत्येक कर्म के विधान यो उपर सूदम विचार देस वर यह श्रनुमान करना पढता है कि यह ब्राह्मण को छोड कर श्रन्य जाति वे नहीं हो सबते 1 ब्राह्मणों में ही इसी प्रकार की स्वाभाविक विद्वत्ता सदा से ही चली श्रा रही है । श्रहोर होते हुए डाक ऐसे प्रकाण्ड ब्राह्मणवत्‌ विद्वान कँसे हुए ? उक्त दन्तक्था के सहारे यह वहा जा सकता है कि डाक के पिता कोई विधिप्ट चिद्वानू ब्राह्मण ही रहें होगे। ऑ्रव प्रद्न यह है कि इनका जन्म-समय कया था ? भाषा वी दृष्टि से बड़ी श्रासानी से में कह सकता हूं कि १५ वी शताब्दी के पूर्व इनका समय नहीं कहा जा सकता है और इसके लिए एक मात्र प्रमाण-ग्रन्य के झ्राघार पर यह देख पड़ता है कि यह १८ वी दातताव्दी के पूर्व के रहे होंगे । शभ्रप्त डाक का समय १४५ थी शताब्दी के वाद झ्रौर १८ वी दाताब्दी के पूर्व का हो कहना होगा 1 दे सन्‌ १९४६ में राजस्थान-भारती के प्रथम झक में प्रो नरोत्तमदास स्वामी ने राजस्थान की वर्पा सबधी बहावतें शीर्पक लेख सरस्वती कुमार के नाम से प्रकादित किया था । उन्होंने डॉ० उमेद मिश्र श्रौर रामनरेदा शिपाठी के मतों की झालोचना करते हुए लिखा है -- डाक वचन की भापषा के झाघार पर डॉ० मिश्र उसका मिथिलावासी होना झ्नुमान करते हैं पर यह बडा निवेल प्रमाण हूँ। राजस्थान में डाक की. जो उवितयाँ मिलती हैं उनकी भाषा शुद्ध राजस्थानी है। पंजाब में वह पजावी हो ग्यी हैं श्रौर सयुकतप्रात में श्रवधी या पूर्वी । चात यह हैं कि मोखिक रूप में लोव-प्रचलित रचनाग्ो वी भाषा स्थान तथा समय के साथ-साथ सदा वदलती रहती है । श्रत केवल भापा के श्राधार पर डाक को मैधिल या राजस्थानी या पजाबी कहना उचित नही जान पडता 1 राजस्थान से डाकोत नाम की एक याचक जाति है । डाकोत लोग अपने पास पत्रा रखते हूँ श्रौर लोगो को तिधि-वार श्रादि क्ताया करते हैं । वे रादि भ्रादि का शुभाशुभ फल दिशायूल आदि ज्योतिष की छोटी मोटी बातें भी सुनाते हूं । ये झपने को डाक की सन्तान कहते हूं । डाकोत दब्द डाक-पुत का झपभ्र झा है जिसका श्रर्थ है डाक के वद्यज डाक्-पुच डाक-पुरा डाक-उत्त डाक-उत डाकौत डाकोत । पुत्र का य्पभ्र झा उत राजस्थानी भाषा मे सन्तानवाचक प्रत्यय बन गया है । जहा तक हमे मालूम हो सका है डाकोत लोग राजस्थान के चाहर नहीं पायें जाते । झत. हमारा श्रनुमान है. कि राजस्थानी जनता में प्रचलित इस विश्वास में तथ्य है कि डाक राजस्थान का ही निवासी था ।




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