मेरी पट्टी विजय | Meri Patti Vijay

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Meri Patti Vijay by रमणलाल व. देसाई - Ramanlal V. Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय १९ नकद डा दशक कक रस शकाी का करके की जिसे महाराज श्राज्ञा दें । इत्र ने उत्तर दिया । तुम इस काम को कर सकोगे इत्र ? पुलोमा ने बत्र को ही यह काम सौंपा । हमारी सुविधा का सवाल ही नहीं उठता । महाराज की श्राज्ञा शिरोधाय है | बृत्र ने राजा की श्राज्ञा को स्वीकार किया । तो हमारी आज्ञा हो चुकी इत्र हमारी समभ में अभी के विरुद्ध युद्ध-घोषणा करना उचित नहीं पुलोमा ने वात कही | बृत्र ने इस श्राज्ञा की स्वीकृति नमस्कार द्वारा व्यक्त की श्रौर महाराज की ब्नुमति पाकर वह मन्त्रणा-ग्रह से बाहर चला गया । जाते हु ए. इन को देखकर पुलोमा ने कहा-- यह बालक हमको बड़ा प्रिय लगता है । वह प्रेस का पात्र ही है महाराज सारे झसुर-प्रदेश को यह बालक प्रिय है । रक्त-समुद्र पार करके जब श्राप झसुर वेणशीपाल के प्रदेश में पधारे थे तब श्रापकों याद होगा कि इत्र भी हम लोगों के साथ था । इत्र वेणीपाल का मी प्रिय-पात्र बन गया था और उन्होंने इस बालक को शझ्पने पास रख लेने की इच्छा प्रदर्शित की थी । मैंने इस बात को अ्ापसे छिपा रखा क्योंकि मुक्ते मय था कि श्राप वेणीपाल की इस इच्छा को स्वीकार कर लेंगे | क्रतु ने पुरानी बात का स्मरण कराया | महान असुरखंड सिन्धु श्र शतद्ठ की सीमा से भूमध्य-सागर तक हुमा था । इस प्रदेश की झपनी विशेष सम्यता थी विशेष शासन-प्रणाली थी। सारा देश तीन या चार राज्यों में विभक्त था । प्रत्येक पर सामध्यवान शसुर राजा राज्य करते थे । यद्यपि ये दपति स्वतन्त्र थे तथापि संकट के समय सभी सिन्धु-तट पर राज्य करनेवाले मद्दाराज पुलोमा का नेठृत्व स्वीकार करते थे । तुमने व्यथ ही यह बात हमसे छिपायी । हमको सब-कुछ मालूम है। अब भी कदाचित्‌ वेणीपाल इन्न को अपने पास रख लें । पुलोमा ने अपनी सब- जता प्रकट की । हो सकता है । परन्तु वेणीपाल इत्र को झ्पने पास रखने का इतना झाग्रह क्यों करते हैं? क्रठु ने पूछा । तुम क्लोई कारण बता सकते हो ? पुलोमा ने उत्तर देने के बदले प्रश्न




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