समाजवादी चिन्तन | Socialist Theories
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समाजबाद क्या है ? 7
जोड़ ने समाजवाद के मुख्य तीन कार्यक्रम बताए हैं--(1) उत्पादन के
साधनों के व्यक्तिगत स्वामित्व का उन्मूलन और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए
महत्त्वपूर्ण उद्योगों भोर सेवाप्रो को सार्वजनिक स्वामित्व रीर नियन्य्रण के श्रधीन
करना, (2) उद्योगों का सचालन व्यक्तिगत लाभों के लिए न किया जाकर समुदाय
की ग्रावश्यकताप्रों की पूर्ति हैतु किया जाना झ्लौर इसीलिए उत्पादन की सीमा झौर
प्रकृति को लाभ की दृष्टि से मिश्चित न करके समाज की ग्रावश्यकताग्रो की दृध्टि
से निश्चत करना, एवं (3) व्यक्तिगत लाभ के प्रलोभन के स्थान पर जो क्रि वर्तमान
उद्योगों के पूंजीकरण में प्रावश्यक बना दिया जाता है, सामाजिक सेवा-की भावना
की स्थापना करना 1
प्रो० पीयू के भनुसार उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत भ्रधिकार को ही
पूँजीवाद धौर सार्वजनिक ग्रधिकार को समाजवाद कहते हैं ।
रोश्चर के शब्दों में, समाजवादी इन सब प्रवृत्तियों के पक्ष में हैं जिनमें
मनुष्य के व्यक्तिगत हित की अपेक्षा सार्वजनिक सुख की बात निहित हो ।”
बद्“ेंगड रस्तल में लिखा है कि “यदि हम श्रये, सम्पत्ति तथा भूमि के सामुदायिक
स्वामित्त्व से समाजवाद का प्रर्थ लें तो हम उसके सारांश के निकट पहुंच जाते हैं
গান্যার नरेन्द्र देव के भ्नुसार, “समाजवाद का उद्देश्य एक बर्गविहीन समाज
की स्थापना करना है जिसमे ने कोई शोपक हो भ्रौर न कोई शोपित, बल्कि समाज
सहकारिता के प्राधार पर निर्मित व्यक्तियों का एक सामूहिक सगठन हो 1”
राबर्द के प्रनुछार, “समाजपव्रादी कार्यक्रम में वास्तव मे एक ही माँग है कि
भूमि तथा उत्पादन के श्रन्य साधन जनेता को सामान्य कम्पनी वना दी जाए । इनके
उपपीग एवे प्रवन्व फी व्यवस्था जनता द्वारा जनताके हितके लिएुकी जाए +”
एम० दुगन बोरोबिस्की के अनुसार, समाजवाद की नंतिकता का
मौलिक प्राधार है कि मनुप्य की क्षमता के झ्ादर्श को स्वीकार करना चाहिए 1”
लिपो ह्यघरमन के शब्दों मे, “समाजवाद वह व्यवस्था हैं जिसमें पूंजीवाद
कै विपरीत, निजी स्वामित्व के स्थान पर उत्पादन के साधनों पर सामूहिक स्वामित्व
होता है, व्यक्तिगत लाभ हेतु किए गए भ्रराजक उत्पादन के स्थान पर उपभोग
के लिए नियोजित उत्पादन होता है”
जवाहरलाल नेहुरू के शब्दों मे, “समाजवाद एक आर्थिक सिद्धान्त से कुछ
अधिक है । इस जीवन का दर्शन है। समाजवाद के अतिरिक्त गरीबी, बेरोजगारी,
श्रपम्मान एवं मोहताजी से दुर करने का अरन्य कोड उपाय नहीं है 1 इसका प्रथं महदह
कि समाज के राजनीतिक एवं सामाजिक ढाँचे में आमूलचूल परिवर्तन, भूमि एवं
उद्योग मे निहित स्वार्थों का उन्मूलन एवं इसके साथ ही काम के सामन्तवादी तया
अधिनायकवादी स्वरूप की भी समाप्ति । इसका अर्थ यह है कि बहुत हो सीमित
सम्पत्ति कौ समाप्ति तथा वतमान लाम-प्रणाली के स्थान पर सहकारिता के उच्च
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