भारतीय संस्कृतिके आधार | Bhartiya Sanskritke Adhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
434
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्या भारत सभ्य हूँ”
है, प्रतियोगिताके सिद्धातके अनुसार यह प्रयत्न स्वाभाविक और समुचित भी हैं। कारण,
यदि वह सास्छृतिक दुष्टिसे वदरु जाय और जीत लिया जाय तो जब .जगत्की भौतिक
व्यवस्थामें वह फिरसे अपना स्थान बना लेगा तव एशियाई आदेके द्वारा यूरोपके जीते
जानेका कोई खतरा नहीं रहेगा। इस प्रकार यह एक सास्कृतिक कलह ,हैँ जो राजनीतिक
प्रबनके साथ उलझकर जटिल हो गया है। इसका कूट आशय यह है कि सास्क्ृतिक दृष्टि-
से एशियाको यूरोपका एक प्रदेश बनना होगा और राजनीतिक रूपमें उसे एक” यूरोपीय
सघ या कम-से-कम यूरोपीय रममें रगे हुए सघका एक अगमात्र बन जाना होगा, नही
तो सभव है कि सास्कृतिक दुष्टिसि यूरोप एशियाका एक प्रात वन जाय, नथी विश्व-व्यवस्था-
में एशियाकी समुद्ध, विपुल और शक्तिशाली जातियोकि प्रवल प्रभावके दारा एशियाई रगमें
रग जाय। मिस्टर आर्चरके आक्रमणका मूक उदेश्य स्पष्ट रूपमे राजनीतिकं हं । उस-
के सारे गीतकी टेक यही ह कि विश्वका नव-निर्माण तकंवादी एव जडवादी यूरोपीय
सम्यताकी रीति-नीति एवं विधि-विधानके अनुसार हो होता चाहिये। उसकी युवित यहं
है कि यदि भारत अपनी समभ्यतासे चिपका रहे, यदि वह इस समभ्यताकी आध्यात्मिक
प्रेरणाको प्रेमसे पोसता रहे तथा निर्माणके सबधमें इसके आध्यात्मिक सिद्धातके प्रति आसकत
रहे, तो वह इस शोभन, उज्ज्वल, युक्तिवादौ जगत्का एक जीवत प्रतिवाद, इसके मस्तक-
पर एक कृत्सित 'कलक”का टीका बना रहेगा। या तो उसे नखसे शिखतक यूरोपीय
रगमे रग जाना होगा, तक॑वादी एव जडवादी वनना होगा मौर इस परिवतनके दारा स्वा-
धीनताका अधिकारी वनना होगा या फिर उसके सास्कृतिक गुरुजनोको ही उसे अपने अधीन
रखकर उसपर शासन करना होगा उसके श्रेष्ठ एवं प्रबुद्ध क्रिर्चियन-नास्तिकं यूरोपीय
रक्तको एव निक्षकोको उसके त्रिश कोटि धार्मिक वर्वरोको दृढतापूर्वेक दवाये रखकर शिक्षित
तथा सभ्य बनाना होगा । ऊपरसे देलनेपर तो यह एक हास्यास्पद कथन लगता है, पर्तु
सारत इसके अदर सारे विषयकी जड छिपी हुई है। (सभी लोग इस प्रकार आक्रमण
करते हो ऐसी बात नहीं, क्योंकि आजकल पहलेकी अपेक्षा बहुत अधिक लोग भारतीय
सस्क्ृतिको समझने तथा सराहने लगे हे।) निसदेह, भारत इस |आक्रमणका विरोब करने-
के लिये जाग रहा हूँ तथा अपनी रक्षा कर रहा हैं, परद्षु पर्याप्त रूपमें नही, साथ ही उस-
के अदर वह पूर्ण निष्ठा, स्पष्ट दृष्टि एवं दृढ सक़ल्प भी नहीं है जो इस सकटसे उसको
रक्षा कर सके। आज यह सकट सिर॒पर मडरा रहा हैं। अब उसे चुनाव कर लेना
चाहिये कि उसे जीना है या मिट जाना है,--क््योकि चुनावकी अटल घडी उसके सामने
उपस्थित है।
इस चेतावनीकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, यूरोपके लेखको, पत्रकारों एव राजनीतिज्ञोंके
हालके उद्गार, भारतके विरुद्ध लिखी गयी नयी पुस्केके और लेख आदि तथा पाइ्चात्य
देशोकी जनताके द्वारा क्रिया गया उनका অভ और सीत्साह स्वागत--ये सभी सकटकी
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