हिंदी गद्य दर्पण | Hindi Gaddh Darpan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
83 MB
कुल पष्ठ :
345
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सद्गुरुशरण अवस्थी - Sadguru Sharan Awasthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
डद्गमन हुआ जिसमें. अति साधारण विषय-वर्णुन को पद्म के ढाँचे में
टाखकर कविता का रूप दिया गया था |
हिंदी-गद्य का आविभाव--
वर्तमान प्रचलित गद्य की भाषा, ( खड़ी बोली ) का उद्गंमस्थंल
अथवा आविभावकाल का ठीक-ठीक निर्देश करना कठिन है। हिंदी-
गद्य का आरंभ विक्रमीय संवत् १४०७ के लगभग লালা বধাই।
यह हिंदी-गचद्य बच्तुतः ब्रह्गद्य कहाता हैं। गोरखनाथ ने अपना
'सिट्-प्रमाण” इस सम्नय गद्य में लिखा। इस समय के गद्य-लेखकों में
गारखनाथ, गोकुलनाथ, गंगमट्ट, नाभादास, अमरसिद कायस्थ आदि
की रचनाएँ प्राश मै मा चुकी हैं। इन गद्य-लेखर्कों की भाषा
तथा शैली भ्रत्यंत अनगढ़, श्रनियंत्रित तथा शिथिल है। वास्तव में
इस युग की भाषा के रूप-निरूपण की जो कुछ भी सामग्री उपलब्ध
हो सकी है, वह पंडिताऊ पोथियों, वेष्णब उपदेशों तथा राजकीय
पत्न व्यवद्दार में ही देख पड़ी है। यह ब्रजगद्य स्थायी न बन सका |
टीकाकार्रो के हाथ में पड़कर यह अकाल में ही नष्ट हो गया। ह्वीं
विक्रमीय तक इस বানু का पूर्ण हास हो गया ॥*
गोकुलनाथ-कृत ब्रजप्राषा के दो गद्य-अंथ “चोरासी वै्णवों की वार्ता?
तथा “दो सो बावन वेष्णवों की वार्ता” का उल्लेख भी यहाँ प्रासंगिक है|
किंतु गद्यलेखन का यथेष्ट प्रचार न होने के कारण, ब्रजगंद्य
_पनप ने पाया। काव्यों की टीकाओं का गद्य इतना छचर, भ्रष्ट मोर
अशक्त दिखाई दिया कि उसकी लड़खड़ाहइट और अपांगता ने मूल का
भी मूलेच्छेदन कर डाला।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...