हिंदी गद्य दर्पण | Hindi Gaddh Darpan

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Hindi Gaddh Darpan by सद्गुरूशरण अवस्थी - Sadgurusharan Avasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) डद्गमन हुआ जिसमें. अति साधारण विषय-वर्णुन को पद्म के ढाँचे में टाखकर कविता का रूप दिया गया था | हिंदी-गद्य का आविभाव-- वर्तमान प्रचलित गद्य की भाषा, ( खड़ी बोली ) का उद्गंमस्थंल अथवा आविभावकाल का ठीक-ठीक निर्देश करना कठिन है। हिंदी- गद्य का आरंभ विक्रमीय संवत्‌ १४०७ के लगभग লালা বধাই। यह हिंदी-गचद्य बच्तुतः ब्रह्गद्य कहाता हैं। गोरखनाथ ने अपना 'सिट्-प्रमाण” इस सम्नय गद्य में लिखा। इस समय के गद्य-लेखकों में गारखनाथ, गोकुलनाथ, गंगमट्ट, नाभादास, अमरसिद कायस्थ आदि की रचनाएँ प्राश मै मा चुकी हैं। इन गद्य-लेखर्कों की भाषा तथा शैली भ्रत्यंत अनगढ़, श्रनियंत्रित तथा शिथिल है। वास्तव में इस युग की भाषा के रूप-निरूपण की जो कुछ भी सामग्री उपलब्ध हो सकी है, वह पंडिताऊ पोथियों, वेष्णब उपदेशों तथा राजकीय पत्न व्यवद्दार में ही देख पड़ी है। यह ब्रजगद्य स्थायी न बन सका | टीकाकार्रो के हाथ में पड़कर यह अकाल में ही नष्ट हो गया। ह्वीं विक्रमीय तक इस বানু का पूर्ण हास हो गया ॥* गोकुलनाथ-कृत ब्रजप्राषा के दो गद्य-अंथ “चोरासी वै्णवों की वार्ता? तथा “दो सो बावन वेष्णवों की वार्ता” का उल्लेख भी यहाँ प्रासंगिक है| किंतु गद्यलेखन का यथेष्ट प्रचार न होने के कारण, ब्रजगंद्य _पनप ने पाया। काव्यों की टीकाओं का गद्य इतना छचर, भ्रष्ट मोर अशक्त दिखाई दिया कि उसकी लड़खड़ाहइट और अपांगता ने मूल का भी मूलेच्छेदन कर डाला।




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