आर्थिक योजनायें और गांधी जी | Arthik Yojnayain Aur Gandhi Ji

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Arthik Yojnayain Aur Gandhi Ji by दूधनाथ सिंह - Dudhanath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) (३) पूर्ण उद्यम--इसके कई अर्थ होते हैं। समाज में काय तथा अवकाश का उचित संतुल्लनन स्थापित करना । उतने समय का कायं जिससे जीविका चलाने में कोई बाधा नहो। साथ ही साथ उतना अवकाश भी जिससे अपना सांस्कृतिक विकास भी व्यक्ति कर सके। पूर्ण उद्यम के यह भी तात्यय हैं कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा कें अनुकूल तथा उचित वातावरण में काय पा सके, जिससे उसका जीवन स्तर ऊँचा उठ सके और उसका व्यक्तित्वपूण विकसित हो सके | इस पूर्ण उद्यम द्वारा प्रत्येक राष्ट्र न केवल अपनी सम्पत्ति की बुद्धि कर सकता है बल्कि वहाँ का नागरिक अपने आत्प सम्मान को मी ऊँचा उठाता है ओर समाज का एक उपयोगी सदस्य बनने में समथ होता है । पू णु उद्यम की समस्या आज के युग में बड़ा ही महत्वपूण स्थान रखती है | इसकी अवहेलना या इसके प्रति उदाप्तीनता कोई राष्ट्र या समाज नहीं दिखला सकता । बेकारी या श्रध बेकारी समाज को जजंर तथा निबतल बनाती है क्योकि मनुष्य के सम्मान को यह्‌ धक्का देती हे । चाणक्य के शब्दों मे “यटिमिन देशे न सन्मानोन वृत्तिन च बान्धवाः न च विद्या বাদী ऽप्यस्ति वासं तत्र न कारयेतः | बहूुतसे विचारकों ने बेकारी को मृत्यु से भयंकर पाप बताया है। यह एक प्रकार की आत्म हत्या है। सब पापों का मूल है | गेलेन ने कहा है कि काम प्राकृतिक वेद्य है और मानव सुख के लिए. अत्यन्त आवश्यक है। इसीलिए इस समस्या का निराकरण प्रत्येक समाज और राष्ट्र करना चाहता है | इसके लिए श्रनेकों योजनाये ग्राज संसार में बनाई जाती हैं। जनसंख्या वृद्धि तथा मशीनों का ग्राविष्कार इस समस्या को जटिल बनाता जा रहा है | (४) आर्थिक सुरक्षा--प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार का पोषण चाहता है | उसके लिए. उचित भोतिक साधन की उपलब्धता चाहिए | श्रतएव प्रत्येक को काम मिले तथा काम में स्थायित्व हों और काम का पुरस्कार उसे वर्तमान तथा भविष्य के जीवन को पोषक तत्व प्रदान कर




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