भारतीय इतिहास : एक द्रष्टि | Baratiya Itahas Ek Drasti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
719
श्रेणी :
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No Information available about डॉ.ज्योतिप्रसाद जैन -dr.jyotiprasad jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रागुरेतिहासिक काल १३
एच ० जो ° वेल्सके अनुसार वह ८० करोडसे ४० करोड वषं पूवतकं रहा
प्रतीत होता है । इस कालके प्रारंभमें सम्पूर्ण पृथ्वी प्राय: एक रूप थी,
उसमें भारत, युरोप, अफ्रोका, अमेरिका आदि जैसी भौगोलिक इकाइयाँ न
बन पाई थीं । किन्तु यह् अनुमान किया जाता है कि भारतके हिमवन प्रदेश
तथा दक्षिणी पठार को रूपरेखा भताक्ष््चिक इतिहासके प्रारंभम हो बन गई
थी । वस्तुतः हिमालयसे कन्याकुमारी पर्यन्त सम्पूर्ण वर्तमान भारतके ढांचे
का मूछाधार भी बन गया था। इस प्रकार भारतवर्षका मूल चट्टानी
आधार वमुंध राके ज्ञात जीवनमें प्रारंभसे ही अवस्थित था ।
निर्जीव युगके उपरान्त जीव युगका प्रारम्भ होतार । इसके तीन
खंड दै--पहला काल-पुरातन जीवयृग ( पेलेजोइक ), दूसरा काल--
मध्यजीव युग (मंसेजोइक) और तीसरा कालू--नव्यजीव थुग (केनेंजोइक) ।
यह पहला काल ड1० हेडेनके अनुसार ४० से ३० करोड़ और वैल्सके अनु-
सार ३० से १५ करोड वर्ष पर्यन्त चला | इसो कालमें सर्व प्रथम धरातल
पर वनस्पतियों और जीव-जन्तुओंके अपने सररूतम प्रारंभिक रूपोंमें उदय
होनेंका अनुमान किया जाता हैं,जिनसे हो शर्ने:-शने: जलचर, नभचर एवं
थलचर प्राणियों का तथा जलीय एवं स्थलोय वनस्पतियों का विकास हुआ ।
इस कालमें भूतलकी रूपरेखा भी वर्नमानसे नितन्त [মল শী । दूसरे
कालमें पृथ्वीने बड़ी ऐठ मरोड़ दिखायी, भूतलमे बड़े-बड़े परिवर्तन हुए,
जल थल विभाजनमें अन्तर पड़े । इस युगमें पृथ्वीको भौगोलिक स्थिति
बहुत करके जंन शास्त्रोंम वणित 'अढ़ाई ह्वीप-मनुष्य लोक” के सदृश थी,
अर्थात् उत्तरीय ध्रुव को केन्द्र लेकर उल्टे कटोरे जैसा एक अविच्छिन्न
भूखंड था जिसे चारों ओरसे मेखला की नाई एक वृत्ताकार महासागर घेरे
हुए था । तत्पर्चात् फिर एक मेखलाकार अविच्छिन्न भूखंड था--दक्षिणी
भारतके कुछ भाग, अफ्रोका, दक्षिणी अमरीका, आस्ट्रेलिया आदिकों
संयुक्त करता हुआ। उसके नोचे फिर एक वृत्ताकार महासमुद्र ओौर
अन्तमें दक्षिणी घ्र्.व पर्यन्त ऊपर जैसा एक अन्य भूखण्ड । यह काल १५
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