साहित्य - सुषमा | Sahitay-sushma

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : साहित्य - सुषमा  - Sahitay-sushma

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी - acharya nanddulare vajpayi

No Information available about आचार्य नंददुलारे वाजपेयी - acharya nanddulare vajpayi

Add Infomation Aboutacharya nanddulare vajpayi

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

No Information available about श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

Add Infomation AboutShri Lakshminarayan Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ११ ) छनका अर्थ वही नहीं है जो एक त्रिकोण क्षेत्र या चतुर्भुज क्षेत्र की रेखाओं का होता है; उसी प्रकार काव्य के वाक्य, पद आदि असाधारण रूप में: संश्लिष्ट श्रथ ध्वनित करते हैं। इसी असाधारण अथ-ग्रहण से काव्य एक विशेष प्रकार का आनन्द प्रदान करता है जिसे संस्कृत के साहित्य- शासत्री अलौकिक आनन्द कहते हैं । कवि अपने काव्य का निर्माण करता हुआ वरसतु-जगत्‌ और कहल्पसा- जगत्‌ की अनोखी वस्तुओं को रूप प्रदान करता है। वह ऐसी-ऐसी अत्युक्तियों- का प्रयोग करता है जो साधारण दृष्टि से स्वप्त में भी सत्य नहीं हो सकतीं | बह ऐसी-ऐसी उपमाएँ लाकर रखता दहै जिनके केवल एक रुण-विशेष या अआकार-विशेष का ही अर्थ ग्रहण कर लिया जाता है और शेष सब से कोई. प्रयोजन ही नदीं रखा जाता । काव्यजगत्‌ के ये सव प्रसंग रहस्यमय हैं; परन्तु इनके सत्य होने में संदेह नहीं किया जा सकता | ये जैसे आप से आप ही अपना अनोखापन दूर कर सत्य वनकर प्रतिष्ठित हो -जाते हैं। हम एक नाटक का अभिनय देखते हैं। उस नाटक के पात्रों से हमारा कमी का परिचय नहीं। जो अभिनेता हमारे सामने उपस्थित होकर अ्मिनय कर रहे हैं उनसे हमारा कोई संबंध नहीं | जो कुछ हम देखते हैं वह हमारी वास्तविक परिस्थितियों: से बहुत दूर है | पर क्या बात है कि हम उससे प्रभावित होते हैं ? बात वही है जो एक चित्र के देखने पर होती है| नाटक भी एक प्रकार का चित्र हीः है | वह ठीक चित्रकला के नियम्रों का पालन करता है। चित्र छोटे से छोटे आकार में बड़े से बड़ा बोध करा सकता है। प्रत्येक रेखा की एक अनोखी व्यंजना हो जाती है। यही कला का सत्य है। यही काव्य का भी सत्य है। साधारणतः काव्य के सत्य से हमारा अमिप्राय यह होता है कि काव्य में उन्हीं बातों का वर्णन नहीं होना चाहिए, और न होता ही है, जो ' वास्तविक सत्यता कौ कसौटी पर कसी जा सकती हं, पर उनका भी वणन होता है और हो सकता है जो सत्य हो सकती हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि यदि यह बात है तो काव्य में अत्युक्ति अलंकार का कोई स्थान ही नहीं होना चाहिए । वह तो सर्वथा असत्य होगा | पर बात ऐसी है कि हम - अपने वणन द्वारा पाठकों के हृदय पर वदी भाव जमाना चाहते हैं जो हमारे हृदेय-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now