विश्व की कहानी | Vishv Ki Kahani

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Vishv Ki Kahani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० 2 दया अब न বু | लक. | ঈ और '“क' पर ही मिलेंगी। . न के दर्मियान बिन्दु “ग पर वः पर॒ बनेगा । यदि प्रदीत भ्‌ः पर मिलेंगी--उस प्रदीम भौतिके विज्ञान श्वः दपंण॒ का ध्रुव कहलाता है । “कः उस गोले का केन है जिसके धरातल में से दर्पण का टुकड़ा काटा गया है। जेसा कि चित्र में नं० ३ से प्रकट है, वे तमाम किरणों जो मुख्य अक्षु के समानान्तर चलकर दप॑ण पर आपतित होती हैं. परावत्तन के बाद मुख्य अक्ष को बिन्दु न! पर काठती हैं। नः को मुख्य नामि ( ०८८ ) कहते हँ | वक्र धरातल- वाले गोल दर्षणों के परावत्तन के सिलसिले में यह स्मरण रखना आवश्यक है कि धरातल के किसी बिन्दु पर खींची गई लम्बरेखा केन्द्र 'क' से गुज़रनेवाली त्रिज्या होगी | स्पष्ट हे कि के पर रखे हुए बिन्दु से चलकर आलोक- হহিলঘাঁ दर्पण से परावत्तित होने पर पुनः उसी रास्ते लोटंगी अतः इस बिन्दु का बिम्ब भी “का पर ही बनेगा। यदि प्रदीप्त विन्दु खः पर रखा जाय तो परावत्तंन के उपरान्त श्वः से चली हुई किरणे “कः श्रौर मिलेगी । रतः 'ख” का बिस्तर ध्गः पर बनेगा | इसके प्रति- वूल यदि प्रदी भिन्दु शगः पर प्लवा जाय तो इसका विम्ब बिन्दु दर्पण के सामने एकाघ मील की दूरी पर रखा जाय तो इस बिन्दु से चली हुई किरण, जो दर्पण पर आपतित _: होंगी, लगभग एक दूसरे के समानान्तर ही होंगी) श्रतः परावत्तन के बाद वे सभी बिन्दु का भिम्ब्र न पर बनेगा (दे० चित्र में न॑ं० १, २, ३)। सूय का ब्रिम्ब नतोदर दर्पण में उसके नाभित्रिन्दु पर बनता है । ये सभी बिम्ब दपंण के सामने वास्तव में बनते हैं-- धुंधले कोच के परदे पर ये बिम्ब स्पष्ट उमर आते हैं। . सभी वास्तविक बिम्ब उलटे बनते हैं। यदि बिम्ब 'को और नःके बीच बनता है, तो वह मुख्य पदार्थ की अपेक्षा: : छोटा होता है, ओर जब बिम्ब 'क! श्व' के बाहर बनता है; एक वक्र दपण में दिखा देनेवाला विङ्कन प्रतिबिब तो वह मुख्य पदाथं से बडा होता है। जब वस्तु व को हम न! और “घ' के बीच ले आते हैं तो उत्त वस्तु সি से चली हुई किरणुं परावत्तेन के उपरान्त दर्पण के सामने नहीं मिलतीं, वरन्‌ वे दर्पण के पीछे “ब” पर मिलती हुई जान पड़ती हैं | अतः इस दशा में बिम्ब काल्पनिक वनता है ओर यह्व त्रिम्ब सीधा तथा उस वस्तु की अपेक्षा आकार में बड़ा होता है ( दे० चित्र में नं० ४ )। उन्नतोदर दर्पण में बिन्दु 'क' ओर “লন” दोनों ही दर्पण के पीछे होते हैं। जेसा कि चित्र में नं० ५ से प्रकठ है, दर्पश के सामने किसी वस्तु को कहीं भी रखिए, इसका बिम्ब दर्पण के पीछे ही बनेगा--ब्रिम्ब का- व्पनिक। सीधा तथा आकार में उस वस्तु से छोटा होगा । उन्नतोदर दर्पण में बिम्ब सदैव दर्पण के पीछे बिन्दु 'घ' और काल्पनिक ब्रिम्ब का से आगे (+¢ কষ ५५ कानिवाल ओर मेलों में अन्य इसी प्रकार के वक्त दपणों को एक दूसरे से सठाकर इस तरह रखते हैं कि दर्शाक- प्रतिबिम्ब इनमें देखते हैं। कसी दपण मे सिर चिपट तथा टाँगें पतली दीखती हैं तो किसी में हाथी-जेसी मोदी टॉंगें दिखलाई देती हैं। मोटरकार के लेम्प के दर्पणु लगा रहता है। बल्ब की किरण इस नतोदर दर्पण से परावर्त्तित होकर उस ब॒ल्त्र का एक वास्तविक बत्रिम्ब कुछु दूर सामने बनाती हैं--यह ब्रिम्ब अभिवद्धित रूप में सड़क पर पड़ता है जितसे डाइ वर को अँधेरे सें दूर तक रास्ता दिखलाई তলা ই | নাহ. विक अमिवद्धित तिम्ब प्राप्त करने के लिए बल्ब को दर्पण के मुख्य नाभिबिन्दु और उसके केन्द्र के बीच में खना ` ज़रूरी होता है | सचलाइट में मी यही प्रबंध रहता है।.... कके वीच बनेगा | यह कभी निकल ही नहीं सकता। उन्नतोदर तथा नतोंदर और गण बड़े वीमत्स तथा विचित्र भीतर बल्ब के पीछे ही नतोदर `




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