घनानंद और स्वच्छंद काव्यधारा | Ghananand Aur Sawchhand Kavya Dhara

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Book Image : घनानंद और स्वच्छंद काव्यधारा  - Ghananand Aur Sawchhand Kavya Dhara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* ^~ 4 (बना, घनी-स्वामी) फोई साधारण व्यक्ति कैसे हो सकता है। वह सुलान है, प्रवीण है, सद्ृदय है, साहित्य के विधि-विघानों से भिर दै! वदी इस पर भता ३, इसकी सदम भाव-भगिमा फो समता ३ । वूभनि- प्रतीतिः रस-्रतीति-की गोद में, फाव्य-प्रतीति के भ्रक में, उसे लेकर विलसता है। घनश्रानद की रचना फा सौंदर्य आदत है, वह शब्दों द्वारा वाच्य नहीं है। ইত ही, सहृदय ही, उसके मर्म फो समझ सकता है। पर इख मीन को श्रमौन या चखान मेँ परिणत कौन कर सकता है? वाशी लिख प्रफार मौन भै श्रनेक वखानो फो समेटे सिमटी पढ़ी रहती है उसी प्रकार वाणी उस मौन भँ छिपे तत्व फो प्रफाशित भी कर सकती दै । लिछकी वाणी में मौन के मीतर श्रनेक अश्रमीन तत्वों फो छिपा रखने फी मता नहीं वह फर्ता, समय कर्ता, नहीं श्रोर जिसकी वाणी में उनको प्रकाशित फर सकने फी शक्ति नहीं वह सूचम-ग्रहीता नहीं; सह्ृदय नहीं। -घनश्रानद फो स विषय भँ नैराश्य नदह । नेराश्य भारतीय परपरा में नहीं; शरँगरेनी फी श्रनुङृति पर नैराश्य फी नदी छायावादी वधु मले ही प्रवाहित षर चुके हँ श्रौर श्रपनी रचना फी गूढता समभन के संबघ मेँ भी चाहे उन्हें नेराश्य ही रहा हो, पर न भवभूति को नैराश्य यान घनश्रानंद फो । वे बाणी फी, सद्ददय फी वाणी फी, प्रशस्ति यो करते दै- शोंखिन मृदवो वाव दिखावव, सोवनि जागनि घार ही पेखि लै । वात-सरूप अनूप रूप हे भूख्यौ कदा तू अत्तेहि लेखि ल । घात की धात घुघाठ विचारो है मता सव ठौर धिसेखि लै । ঈননি काननि धीच वसे घनधारनैद मौन चखान सु देखि तै ॥ वाणी फी गति श्रत्यंत सूचरम है जो श्रन्थ विषि खे श्रसंमव या दुःखम है उसे श्रपनी सृद्धमेक्षिफा से वाणी संभव फर दे सफती है, और बात फी चात में संभव कर दे सकती है। फिसी आँख के मूँदने में फितने रहस्य हैं इसका उद्घाटन वाणी कर सकती है| एक साथ सोना और जागना वाणी ही से देखा जा सफता है। वाणी या জাত स्वयम्‌ एक दशन है, दृष्टि है। उसकी रुपरेखा सूदरम है, वह श्रलेख फा, निराकार फा, लेखा-छोखा भी प्रस्तुत कर सकती है । ब्रह्म का, निगुण ब्रह्म फा, साक्षात्कार वाणी ही से खभव हे । वह निराफार श्रनुभूति फा विषय हो चाहे न हो, पर वाणी फा “विषय तो हो ही सकता है, हुआ ही है। जगत्‌ मले दी श्रनिवंचनीय हो,




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