आधुनिक संस्कृत-नाटक : भाग 1 | Adhunik Sanskrit Natak: Bhag-1

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Adhunik Sanskrit Natak: Bhag-1 by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নত आघुनिक-संस्कृत-तवाठक तस्याः कान्तिद्युतिनि वदने मंजुले चाक्षियुग्मे तत्रास्मा्कं यदवधि ससे दृष्टिरेषा निर्दिष्टा । सत्यं ब्र मस्तदवधि भवेदिन्दुमिन्दीवरं वा स्मारं स्मारं मुखकुटिलता-कारिणीयं हणीया ।\ २.३२ उन्हें राधा वरे सखियो ने फ्रेमपन्न दिया, जिसमें राघा ने लिखा थर कि हें कृष्ण, तुम चित्ररूप मे मेरे मन्दिर में बसते हो। जितना ही तुम मुझे खोचते हो, उतनी ही मैं पतंग की भाँति दूर मथती जाती हू । कृष्ण राघा के प्रति अपने प्रेम को छिपा रहे ये 1 उन्होंने उसकी सखी ललिता से स्पष्ट कह दिमा कि राघा से प्रेम का कोई कारण नही है । विगाखा यह सब सुन कर चकरा गई 1 उसने राधा লী যুক্লানলী ভচ্য के गले मे पहना दी। कृष्ण ने कपटपूर्वक कहा कि मुझे गुझ्जाहार नहीं चाहिए ओर उसे उतारने की भ्रान्ति से अपनी रुगशमालिका उतार कर उन्हे दे दी । सखियो का काम वना' । कृष्ण को पश्चात्ताप हुआ कि शाघा को उपेक्षा का भयावह परिणाम हो सकता है। उन्होंने उसके पत्र क्या उत्तर राघा के पास मेजा, जिससे स्थिति विगड़े नहीं । इधर राघा को लगा कि कृप्ण मेरी उपेक्षा कर रहे हैं। उसने कालिय-हृद में डूब भरने के लिए द्वादझ्ादित्य तीर्थ भें सूर्योपस्थान की अनुमति बड़ों से ली। वह सती के साय यमुना में डूबने चली । मार्ग मे कृष्ण और मघुमगल ने उन्हें देखा तो& चुपछाप उनकी यातें छिपकर मुनने लगे । राधा ने कृष्ण की भरपूर निन्दा की=- वयं नेतु युक्ताः कथमश रगां कामपि दशा कथं वा न्याय्या ते प्रथयितुमुदासीन-पदवीम्‌ ।॥ २-४६ कृष्ण ने राघा के भेम को पराऊाप्ठा अपने कानो से ही सुनकर जान ली । जब राघा चने कृप्ण का ध्यान लगाया तो वे साक्षात्‌ उसके समक्ष प्रकट हो गये | राधा का आनन्द असीम था। पर कुछ ही क्षणो के पस्चात्‌ वहां राधा को स्रात्त जटिला आ पहुंची । राधा और क्प्ण परस्पर मिलन के लिए व्यादुल थे। ऐसे समय पौर्णमासी ने कृष्ण को कर्तव्य सुज्ञावा कि इस मार्य से राधा से शीघु मिलन सम्भव है! पौ्णमात्तौ इवर राधा त्ते मिलती ओर चोद्य जि कृष्या কা प्र कठिश अतीत होता है। तुम तो कोई और उपाय करो ।* इसे सुनकर राघा को जांज़ें उत्तानित हो गईं । वह मरणासन्‍्त हो गई। पौर्षेमासी को छेते के देठे पड़े उतने रावा को तत्ततार्थ ददाया-- १ इस नाठक में यह बूट्घटना छाया-त्त्त्वानुसारी है । २ पौणेमासी के द्वारा प्रस्तुत यह कूट घटना हैं, जैसा उसने स्वयं राधा से वहा है--भावानिव्यक्तये प्रोत्वापितासि । #)




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