हिंदी के अर्वाचीन रत्न | Hindi Ke Arvachin Ratna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतेन्दु बाबू हरिइचन्द्र <
भारत-भूमि के विषय में लिखा है-
हाय वहै भारत भुव भारी)
सबही विधितं भई दुलारी ॥
भारतेन्दु जी राष्ट्र-प्रेमी होने के साथ-साथ हिन्दी-प्रेमी भी थे । इन्होंने
(हिन्दी की उन्नति पर व्याख्यान' नामक पद्म की रचना की, जिसमें उन्होंने
अपना हिन्दी-प्रेम प्रदर्शित किया है। यह उनका पद्च-बद्ध व्याख्यान था जो
उन्होंने संवत् १६३४ में हिन्दी-बद्धिती सभा में पढ़ा था। इस व्याख्यान
में उन्होंने अपनी भाषा को सम्पूर्ण उन्नति का मूल बतलाया और सबको हिन्दी
पढ़ने की प्रेरणा दी ।
किसी वस्तु से प्रेम होने पर उससे विपरीत वस्तुओं से स्वतः ही बेर हो
जाता है। राजा शिवप्रसाद जी उदू के प्रशंसक थे भरतः भारतेन्दुजी ने उदू
की बुराई की । इन्होंने हिन्दी की उन्नति पर इसके लिए “उर्दू का स्यापाः
लिखा, जिसमें प्रथम गद्य में उसकी मृत्यु पर स्थापा मनाते हूए
लिखते हैं---
अरबी, फारसी, पश्तो, पंजाबी इत्यादि कई भाषा खड़ी होकर
छाती पीटती हैं ।'
है है उदू हाय हाथ। कहाँ घ्िधारी हाथ हाय ।
मेरी प्यारी हाय हाय । मुंशी मुल्ला हाय हाय ॥ इत्यादि।
इस उद् कैस्यापेसे वे उर्द् का उपहास तो उड़ाते ही हैं साथ ही श्ररबी,
फारसी, परतो श्रौर पंजाबी का भी ।
नए जमाने की मुकरी में वे एक मुकरोी में अंग्रेजी का भी उपहास
उड़ाते हुए दृष्टिगोचर होते हैं---
सब गृरुजन को बुरो बतावे।
अपनी खिचड़ी अलग पकावे ॥
भीतर तत्व न भूठी तेजी।
क्यों सखि सज्जन नर्हि श्रेंगरेजी ॥।
भारतेन्दु जी बड़े सरस एवं विनोदी जन थे। उनकी फबतियाँ एवं
व्यंग्य बड़ मनोहारी है । देखिए ग्रैजुएट एवं पुलिस पर सुकरियों में केसे सुन्दर
व्यंग्य कसे है-- |
तीन बुलाए तेरह आावें। निज निज विपता रोइ सुनावें।
श्राँखों फूटे भरा न पेट । क्यों सलि सज्जन नहिं ग्रैजुएट ॥
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