साहित्य प्रकाश | Saahitya Prakash

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' Ram Shankar Shukk ' Rasal ' - Pt. Ramshankar Shukk ' Rasal '
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(घ) गीत-काव्य---उक्त वीर-काव्यों के साहित्यिकछन्दों
में न लिख कर जब गीतों या संगीतात्मक पद्मों में लिखते हैं तब
उन्हें वीर-गीत्-काव्य का रूप प्राप्न होता है ।
वीर-काव्य की भाषा
त [৮৮০৪ की भाषा एवं शैज्ञी ऐसी हो होनी चाहिए कि
उससे हृदय में उत्साह, साहस एवं उत्तेजना की उमड्ठें
तर्लित होने लगे । काव्य-शासत्र में वीर-रस के लिए परुषावृत्तिः
ओजशुण”' और महाप्राण वर्ण-युक्त पांचाली” रीति ही उपयुक्त
मानी गई है। छन््दःशासतर के अनुसार वीर-काव्य के लिए कोई विशेष
छन्द निश्चित नहीं किया गया किन्तु अनुभव से ज्ञात हाता है कि
वीर-काव्य के लिए प्रायः गीत, वीर या आल्हा छन्द; छुप्पय और
कवित्त था घनाक्षरी विशेषरूप से उपयुक्त जँचते हें ।
अब यदि हम अपने ग्राचीन वीर-साहित्य को देखें तो ज्ञात
होता है कि वह पबन्धात्मक ओर मुक्तक दोनों प्रकार के रूपों में
पाया जाता है और कुछ अंशों में वह वीर-गीतों (13211408) में
भी लिखा गया है। किन्तु प्रथम दो रूप जैसी साहित्यिक क्षमता
रखते हैं बैसी तृतीय रूप में नहीं पाई जाती । साहित्यिक प्रबन्धा-
त्मक वीर-काव्य का ते सबसे प्रधान ग्रन्थ चन्द्रकवि-कृत “प्रथ्वी-
राजरासा” ही उपलब्ध है ओर गीतकाव्यात्मक वीर-काव्य का
प्राचीन अंथ “बीसलदेवरासे!” ही प्राप्त होता है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...