साहित्य प्रकाश | Saahitya Prakash

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Saahitya Prakash by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' Ram Shankar Shukk ' Rasal ' - Pt. Ramshankar Shukk ' Rasal '

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(घ) गीत-काव्य---उक्त वीर-काव्यों के साहित्यिकछन्दों में न लिख कर जब गीतों या संगीतात्मक पद्मों में लिखते हैं तब उन्हें वीर-गीत्‌-काव्य का रूप प्राप्न होता है । वीर-काव्य की भाषा त [৮৮০৪ की भाषा एवं शैज्ञी ऐसी हो होनी चाहिए कि उससे हृदय में उत्साह, साहस एवं उत्तेजना की उमड्ठें तर्लित होने लगे । काव्य-शासत्र में वीर-रस के लिए परुषावृत्तिः ओजशुण”' और महाप्राण वर्ण-युक्त पांचाली” रीति ही उपयुक्त मानी गई है। छन्‍्दःशासतर के अनुसार वीर-काव्य के लिए कोई विशेष छन्द निश्चित नहीं किया गया किन्तु अनुभव से ज्ञात हाता है कि वीर-काव्य के लिए प्रायः गीत, वीर या आल्हा छन्द; छुप्पय और कवित्त था घनाक्षरी विशेषरूप से उपयुक्त जँचते हें । अब यदि हम अपने ग्राचीन वीर-साहित्य को देखें तो ज्ञात होता है कि वह पबन्धात्मक ओर मुक्तक दोनों प्रकार के रूपों में पाया जाता है और कुछ अंशों में वह वीर-गीतों (13211408) में भी लिखा गया है। किन्तु प्रथम दो रूप जैसी साहित्यिक क्षमता रखते हैं बैसी तृतीय रूप में नहीं पाई जाती । साहित्यिक प्रबन्धा- त्मक वीर-काव्य का ते सबसे प्रधान ग्रन्थ चन्द्रकवि-कृत “प्रथ्वी- राजरासा” ही उपलब्ध है ओर गीतकाव्यात्मक वीर-काव्य का प्राचीन अंथ “बीसलदेवरासे!” ही प्राप्त होता है।




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