बंदी जीवन भाग 2 | Bandi Jeevan Part-ii

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Bandi Jeevan Part-ii by श्रीशचीन्द्रनाथ सान्याल - Shri Shacheendra Nath Sanyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[क {नवद्न ৮১৮১৯ খা 'जेल से छौट कर पिछले विप्छत युग फा एक सक्षिप्त इतिहास छिसमे की प्रवछू इच्छा मेरे दिल में पुष्ट होती रही, पर दिल की बात दिल में ही रह जाती यदि मेरे परम मित्र श्रीयरुत देमन्तकुमार सरकार मेरे लेप “नारायण” में छपवाने का प्रय्ध स कर देते। कहना चाहिए फ्ि उन्हीं को क्रपा से म यन्टो जीवन का प्रथम भाग लिख कर समाप्र कर सका। बन्दी जीवन के प्रथम भाग में इस यात का कृतझ्ञवाएवंक उलेख न कर के मैं ने सचमुच एक अपराध किया है। “नारायण” में पहले पहल मेरे लेस भ्रकाशित द्वोने से ही पीछे दूसरी पत्रिकाओं में मेरे लेस छपना सम्भय हुआ है । बन्‍्दी जीवन के इस दूसरे भाग का लिखना भी न हो सकता यदि हमारी अत्यन्त प्रिय मासिक पत्चिक्ा “पन्नयाणी” में मुझे क्रमश लेस लिसमे का सुथोग नम मिलता । “पन्नवाणी” के सश्चालकों का मैं इस के लिए अत्यन्त कतज्च वन्दौ जोवन का दूसरा भाग “बन्नवाणी” से द्वी ले कर छपवाया गया दै। निरेक श्री श्चीन्द्रनाथ




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