दर्शन और चिन्तन भाग - 1, 2 | Darshan Aur Chintan Bhag - 1, 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
941
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संक्षित परिचय + ५:
हो जाता। पुस्तकोंकी देखभाल इतनी अधिक करते थे कि सालभरके उपयोगके
बाद भी वे बिलकुल नई-सी रहती थीं ।
गुजराती सातवीं श्रेणी पास करनेके बाद सुखलालकी इच्छा अग्रज्ती
पढ़नेकी हुओ, पर उनके अभिभावकोंने तो यह सोचा कि इस होशियार
लड़केको पदाओके बदले व्यापारमे लगा दिया जाय तो थोड़े ही अरसेमें दुकानका
बोश उठानेमें यह अच्छा জা্গীবা बनेगा । अतः उन्हें दुकान पर बठना पढ़ा ।
धौरे धीरे सुखलार सफल व्यापारी बनने लगे। व्यापारमें उन दिनों बड़ी
तेजी थी। परिवारके व्यवहार भी ढगसे चल रहे थे। सगाई, शादी, मौत और
जन्मके मौको पर पसा पानीकी तरह बहाया जाता था। अतिथि-सल्कार और
तिथि-खौहार पर कुछ भी बाक्री न रखा जाता था) पडितजी कहत हैँ -- इन
सबको में देखा करता। यह सब पसंद भी बहुत आता था | पर न जाने क्यों
मनके किसी कोनेसे हल्की-सी आवाज्ञ उठती थी कि यह सब ठीक तो नहीं हो
रहा है। पढ़ना-लिखना छोड़कर इस अकारक खर्चीले रिवाजोर्मे लग रहनेसे
कोई भला नहीं होगा । शायद यह किसी अगम्य भाजषीका ड्रगित था ।
चौदह वर्षकी आयुर्मे विमाताका भी अव्रसान हो गया । सुखलाऊकी सगाई
तो बचपन ही भें हो गई थी) वि० सं १९५ पद्रह वर्षको अवस्थामे
विवाहकी तयारियाँ होने लगीं, पर ससुरालकी विसी कट्रिनाईके कारण उस वर्ष
विवाह स्थगित करना पड़ा। उस समय किसीकोी यह ज्ञात नहीं था कि वह
विवाह संदाके लिये स्थगित गहेगा।
चेचककी बीमारी
व्यापारमें हाथ बैंटानवाले सुखछाल सारे परिवारकी आशा बन गये थे,
किन्तु मधुर लगनवाली आशा कदे बार टगिनी बनकर धोखा दे जाती है ।
पडितजीके परिवारको भी यही अनुभव हुआ । वि से १९७३ में १६ वर्षके
किशोर मुखलाल चचक्रके भयकर रोगके शिकार हुए । शरीरके रोम रोममें
यह व्याधि परिव्याप्त हो गई । क्षण क्षणमे मत्युका साक्षात्कार होने लगा ।
जीवन-भरणका भीषण इन्दह्र-युद्ध छिड़ा । अतमें सुखलाल विजयी हुए, पर
इसमें थे अपनी आंखोंका प्रकाश खो बंठे । अपनी विजय उन्हे पराजयते भी
विकेष असह्य हो गई, ओर जीदन रूत्युसे भी अधिक कश्टदायी प्रतीन हुआ ।
ने्रोके अंधकारने उनकी अत्तरात्माको निराशा एत शुन्यतामे নিম ক दिया।
पर दुःखकी सच्ची औषधि समय है | कुछ दिन बीतने पर सुखलाल
छस्थ हुए । खोया हुआ आंखोंका बाहा प्रकादा धीरे धीरे अंतलोकमे प्रवेश
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