श्रेष्ठतम रूसी कहानियाँ | Shreshthtam Roosi Kahaniaan

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Shreshthtam Roosi Kahaniaan by मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“हो सकता है,” उसने उदास भाव से कहा, यह काफ़ी चलतः रास्ता है) श्रनगिनत यात्री इध्षर से गुजरते हें।” “आर तुम्हारी दृन्या कंसी है?” मेने फिर पूछा। वृद्ध की भोंहों पर बल पड़ गए। “खदा ही जानता है,” उसने कहा। “तो क्या उसका विवाह हो गया ?” सेने पूछा। बुद्ध ने कुछ ऐसा भाव दिखाया जेसे उसने मेरा प्रश्न हो न सुना हो और फुसफ्साकर मेरा आड्डर पढ़ता रहा। मेंने सवाल करना बंद कर दिया और उससे केतली गमे करने का अनुरोध किया। कौतुक मेरे हृदय को कचोट रहा था। मेंने सोचा कि सदिरा की एक मात्रा मेरे पुराने मित्र को चेतन कर देगी और उसकी ज़बान खुल निकलेगी। मेर। अनुमान ठीक ही निकला। व॒द्ध ने मदिरा का प्याला लेने से इनकार नहीं किया। मेंने देखा कि रस ने उदासी के बादलों को छांट दिया है। दूसरा प्याला मुंह से लगाते न लगाते उसकी ज़बान खुली ओर यह याद करके -- था यह यादं करने का बहाना करते हुए कि में कोन हूँ- उसने बतियाना शुरू कर दिया) नतीजा यहं कि खद उसके मुंह से सृ निम्न किस्सा सुनने को भिलः- एक एसा क्रिस्सा, जिसमें मेरी दिलचस्पी थी श्रौर जिसने मेरे हृदय को बरी तरह उद्देलित कर दिया। “सौ तुम भेरी दृन्‍्या को जानते हो?” उसने कहना शुरू १८




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