मुद्रण - कला | Mudran Kala

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Mudran Kala by श्री छबिनाथ पाण्डेय - Shri Chhabinath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय विषय-प्रवेश चैन... कध. ... के ७ मुद्रण शब्द के कहने या सुनने से ऐसे काम का बोध होता है जिसका संबंध छपाई से हो चाहे वह छपाई कागज पर हो कपड़े पर टाट पर या ईंट-पत्थर पर । डाकघर में लिफाफों पोस्टकाडों श्रौर रजिस्टरी या बीमा की चिद्टियों पर जो सुहर देते हैं उसे भी मुद्रण कहते हैं । लेकिन मुद्रण-कला रूढ़ि शब्द हो गईहि । श्रब इससे एक मात्र ऐसी चीज का बोध होता है जिसे टाइप बैठाकर अथवा प्लेट बनाकर रोशनाई से कागज पर छापा गया हो । सम्भवतः कला शब्द के व्यवहार पर कुछ लोगों को आ्रापत्ति हो । ऐसे लोग कह सकते हैं कि मुद्रण तो एक रूखा-सूखा व्यवसाय है कला से इसका क्या संबंध ? श्रौर हमारे देश में जिस तरह धड़ल्ले के साथ प्रेस खुलते जा रहे हैं तथा जिस तरह के लोग इस व्यवसाय में प्रवृत्त होते जा रहे हैं उसे देखते हुए ऐसे लोगों की शंकाएँ निर्मल नहीं कही जा सकतीं क्योंकि हमारे देश में सबसे सस्ता श्रौर सबसे सरल पर साथ-दी-सा थ सबसे अधिक आमदनीवाला यही एक व्यापार समका जाता है जो वास्तव में नहीं है श्रौर जिसके जी में श्राता है वही जहाँ-तहाँ प्रेस खोलकर बेठ जाता है । इसका जो परिणाम हो रहा है उसे बताने की श्रावश्यकता नहीं । किंतु मुद्रण बहुत बड़ी कला है श्रौर उपयोगी कलाओ्रों में इसका श्रेष्ठ स्थान है । इस कला में सूक-बूक श्र बुद्धि की भी बहुत आ्रावश्यकता है । जहाँ श्रन्य उपयोगी कलाओओं के लिए उपादान बाहर से प्रास हो सकते हैं वहाँ इस कला में अपने दिमाग से ही सौंदय॑ उत्पन्न करना पढ़ता है । कुछ श्रंशों में ललित-कला से इस कला को उत्कृष्ट कह सकते हैं । जहाँ चित्रकार और लेखक के भाव इतने अझरपष्ट और गूढ़ रह जाते हैं कि उनकी बारीकियाँ जनसाधारण की समझ में नहीं भी श्रातीं वहाँ इस कला में अस्पष्टता के लिए कोई गुंजाइश नहीं है । डिस्ले ऐसा स्पष्ट और व्यक्त होना चाहिए. कि साधारण व्यक्ति भी छपाई के सौष्ठव को देखकर फड़क उठे । फिर यहीं एक कला है जिसमें दिल आ्रौर दिमाग के साथ-साथ शरीर को भी उसी तरह खपाना पढ़ता है । परिमार्जित रुच्चि सुद्रणु कला की जान है | प्रेस का संक्षिप्त पू्व-इतिहास छापने की कला इस देश के लिए अति प्राचीन वस्ठ॒ नहीं है । प्रायः सौ-सवा सौ साल से इस देश में छपाई की कला का प्रचलन हु है । इससे पहले इस देश की इस कला के क्षेत्र में वही हालत थी जो चौदहवीं सदी में यूरोपीय देशों की थी । इससे पहले




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