अप्सरा | Apsara

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Apsara by श्रीसूर्यकान्त त्रिपाठी निराला - Shree Soorykant Tripathi Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छप्तरा , % . तरफ़ से ज्ञानं का थोड़ा-थोड़ा प्रकाश भर देना भविष्य के सुख-पूर्वक निर्वाह के लिये, अपनी नाव खेने की सुविधा के ज्िये, उसने आवश्यक समझ लिया था। वह जानती थीं, कनक अव कली नही, उसके अंगों के कल दल खल गर उंसके हृदय के चक्र में चारो ओर के सींदयें का मधु भर गया ह. पर उसका लक्ष्य उसकी-शिक्षा की तरफ़ था। अभी तक उसने उसका जातीय शिक्षा का भार अपने हाथों नहीं लिया | अभी दृष्टि से ही वह कनक को प्यार कर लेती; उप- देश दे देती थी । कार्येत: उसकी तरफ़ से अलग थी1 कभी- - , कभी जब व्यवसाय और ` व्यवसावियों से. करुसैत मिलती, . ... बह कुछ देर के किये कनक को बुला. लिया करती 1 त्रौ, “` ॥ | हर तरफ से उसने कन्या के लिये स्तरतंत्र प्रबंध. कर रक्‍खा था । उसके पढ़ने का घर ही में इंतजाम कर दिया था। एक अंगरेज-महिला, श्रीमती कैथरिनं, तीन घंटे उसे पढ़ा जाया करती थीं। दो घंटे के लिये एक अध्यापक आया करते-थे। इस तरह वह शुभर-सखच्छ निभरिणी धिया के ज्योसस्नालोकं के भीतर से मुखर शब्द-केलरव करती हुई ज्ञान के संसुद्र की ओर अबाध बह चली। हिंदी के अध्यापक उसे पढ़ाते -हए अपनी अथे-प्राप्ति कीः कलुषित कामना पर्‌ `पल्वात्ताप “करते; कुशाग्रबुद्धि शिष्या के भविष्य का पंकिल् चित्र खींचते हुए मंन-ही-मन सोचते, इसकी पढ़ाई ऊसर पर वर्षा हे, तल < हे वार्‌ में शांन, नागिन का दूध पीना । इसका काटा हुआ एक কি = =




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