आयुर्वेद का व्रत इतिहास | Aaurved Ka Vrat Itihas

Aaurved Ka Vrat Itihas by भगवती शरण सिंह - Bhgvati Shran Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय वेदिक काल या प्रागेतिहासिक काल वैदिक साहित्य भूगर्भ-शास्त्री पृथ्वी की आयु के चार प्रघान युग मानते हैं, जिनमें से हरएक जीवन विकास के अनुसार कई छोटे भागों में बँटा हुआ है । ये युग इस प्रकार है-- (१) अजन्तुक--जव पृथ्वी पर किसी प्रकार का जीवन न था । (२) पुरा- जन्तुक--जव मेरुदण्डहदीन प्राणियों के रूप में जीवन के चिह्न पहले पहल दिखाई पडे । आरम्भ में सामुद्रिक घास और सेवार, स्पज, लिव-लिव मछली पैदा हुई, वाद में मत्स्य, सरीसूप, पक्षी, बडे-वडे जगल और पेड, जिनसे धरती में कोयले और अगारो की सन्घि वन गयी। (३) मध्यजन्तुक । (४) नवीन-जन्तुक--जिस युग में विविध प्रकार के स्तनपायी जन्तु विकसित हुए, जिनमें से मनुष्य भी सवद्धिंत हुआ ।' मनुष्य की उत्पत्ति से पूर्व उसके जीवन के साधन वन चुके थे, जिस प्रकार दिशु के भूमिष्ठ होने से पहले माता के स्तनों में उसके पोपण का साघन दूध भा जाता है। मनुष्य में ज्ञान का विकास छान -दनै हुआ । आरम्भ में अपनी आवइय- कताओ की पुति के लिए उसने जिन वस्तुओ का और जिस प्रकार से उपयोग किया-- उन्ही के अनुसार इतिहास के युग प्रारम्भ होते है । ये वस्तुएँ--औजार, हथियार, बरतन माँडे हैं, जो कि पुरातत्व की खुदाई मे मिलते है। प्रारम्भ में मनुष्य ने पत्थर से, बिना टाँचे अनगढ गौजार बनायें । इसके वाद इन भौजारो को सुघरे हुए रूप में चमकीला, तरादाकर घिसकर तेज बनाया । मिट्टी के वरतन पहले हाथ से बनाये, फिर चाक पर उनको उतारा । इसके वाद ही विकास की अवस्थाएँ शीघ्रता से तथा अलक्षित भेदो के साथ घटित हुई --जिनमें ताश्र, कास्य और लोहे का प्रयोग मुख्य विशेषता थी । १. हिन्दू सम्यता एव प्राचीन भारत का इतिहास--डाक्टर त्रिपाठी के आधार पर।




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