घर - संसार | Ghar Sansar
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर-संसार / 17
अपरं दीगर पर उतारण लागगी, कोई सासु नै वीषण लागगी--जीभ सू,
चरणी तीवी पड वा, हाथा-पाई रो सामनोही करलं, इत्तं कीरी ही दाठ
उफणगी का कड्ढी निकछगी, चूल्हों बुझग्यो पण महाभारात नी वुझ्यो |
दसी कह, जादातर शिक्षया रो ही हुवे, क्या-मादा मादमी के ग्रुटको
र आयोडा हुवै, लगाया লাই आदमी ही मूढै रा माईक जोरमे करदे ।
पडतो अधारो अर हुती कलह तर-तर वधै । एक बारण रे एक-एक आधे
आसराम मे, सै दुस पांव पण जाग्या छोड'र अछगो, दो पांवड़ा ही कोई
नो जागो चावै। इतियासिक महाभारत अद्वारे दिना में बु्ग्यो, भौ बरसा
सू चल, कुण जाणे कितोक लम्बो चालसी ? वा सोचे, ओ, ईं एक गाव में
ही नो, छीदो-माडो आर्य देस मे है। वा दो-च्यार इसी टोकरपा ने हो
जाणे, जिका पर वारा वेट, हाय उठावता नी मंक। बहुवां उठाव, इंमे
इचरज ही काईं ?
केई धर इसा भी है जिका रे आगणा में दो-दो, तीन-त्तीन भीतां खड़ी
हुयोडी है। वे घर काई, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान रा साकडीजता सस्करण है ।
रा, रोजीने नी तो इकातरे चूके ही नी। से एक-दूजे री पीठ तकता दीसे,
एक-दूसरे ने नीचो दिखावण नै से कूडी किलावन्दी रच, लडनों बीरो काईं
नाव, ईसक॑ रा अनेक रस्ता है। इसे घरा री आ कतार, गाव मे आए साल
नी, आएं दिन लम्बी हुवे की न की। कित्ती ही आधी परम्परावा रो
कमीजतों पजो आ पर टिक्यी है। दास, जुबो अर जारी तो शाटडी-रोटी है
आ रे। झाडा।, डोरा, कड़ाही, अर जात-जम्मा री सुरुवात तो दीखे पण अंत
नी। बीमारी, गरीबी, अर गन्दगी घणखरे घरा ने पइसा सामा दिया ही
छोडणों नो चार्द । रेगरा रा तीन-च्यार धर है, आद्यो चामडो रण है वे ।
नाजो-मोरो मादमी, वा घरा कनकर निक्ढनो अमूज 1 कूडां कोझी तरै सू
सिर, लपट दस पावडा परिया सू ही नाक पर आ देठे, बारी नास्यातों
आदी हुगी अर विसी ही वारी मानसिक अवस्था | दुर्गंध है अर खूब हैं पण
ये समर्झ है क॑ म्हे जड काटदो बीरी | 'चमड़ा रगाई समिति' रे नांव 'लोन'
से-ले जेठ मे ही धनतेरस धोवली वां | रोया बिना मा-हो बोधो नी दें,
थोड़ी कोसीस विया, बाड़ा गोरवे मिल অন ই বাল, बर्ठ निरवाद्टी रंगाई
करो लार पण वै सोच है क वोट रो राज चाल्पां पष्ध, म्हारी चिता बचे
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