एक और सीता | Ek Or Seeta

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Ek Or Seeta by आलमशाह खान -AAlamshah Khan

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डॉ॰ आलमशाह ख़ान
जन्म 31 मार्च 1936
निधन 17 मई 2003

प्रकाशित कृतियाॅं- पराई प्यास का सफर, किराए की कोख, एक और सीता, एक गधे की जन्म कुंडली (कहानी संग्रह) राजस्थानी वचनिकाएं, वंश भास्कर: एक अध्ययन, मीरा: लोक तात्विक अध्ययन (आलोचना), राजस्थान के कहानीकार, ढाई आखर (संपादित), "किराए की कोख" कहानी पर फिल्म तथा"पराई प्यास का सफर"कहानी पर टेली फिल्म निर्मित

संप्रति- पूर्व प्रोफेसर मीरा-चेयर एवं अध्यक्ष
राजस्थानी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर (राज.)
सदस्य, राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग, जयपुर

उदयपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रीडर और राजस्थानी विभाग में प्रोफ़ेसर रहे आलमशाह ख़ान क

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेददी रचा हाथ / 17 सुरियो म मेहदी कौ लाली दिल उठो । तभो न हे सामने भाया मौर वोला, दादी को एक हथेली पर हम मेहदी रचाएगे ? रमे ड़ाइग म ससे ज्यादा नम्बर मिले ह ।' भौर एक तीयी तीली ले वह दादी की हयेली पर मेहदी मानम जुट गया। पडपडा बै किवाड उघड । मुशीजीने कताव परे करभ चष्मे से ऊपर उठाई तो पाया, सामनं लाल लहम-साडी म॑ गहने गहन धार लाज यसी दुलारी खडी है। दा युग पहले कौ उनी चती दुलारी, साडभरी, मानभरी । वह मसनद से उठे, उसके पास आय और उसे वाहा म बटोरतं हुए वात, मैंने वया दिया, मुझसे तो तरी सोतन के जाए---जनम अच्छे जो “ “उस भोली भागवान वहना कौ सौत कहकर क्यू छीनो हो मुझसे मरे बहु-येटे-वेटी-पोता पानी, मसी जी । मीठा त्योहार है, आज तो मीठा वालत ?” वह उनकी बाहा के घेरे म घुलती हुई बोली । फिर अपनी बद मुटठी उनके आगे कर कहा, “बुझा ता भला ? इसमे क्या है?” मुशी जी नं अपनी भावो म उभरी पहलवाली विल्लाड भौर चमक चचल दुलारी को दखा और उसकी बद मुट्ठी का अपनी अजुरी मं भर उस पर अपने होठ रख दिए। वढ्व थांडी दर गुम ठगी सी खडी रही, फिर बोली, “तुम भना क्या वृन्लोग ? तुमने मुझे माटी दी तुम्हारे पोत में मुझे লমা दिया ? ला दखो।” इतना कहकर उसने 3 पनी बदद मुटठी उनके सामने खोल दी। मुशी जी न दखा, उसकी हथेली पर रचा मेहदी का ताजमहल खूब खुला खिला, गहरा रचा बसा। पल छिन के लिए वह भीतर ही भीतर हिल गए और फिर उहोंने उसकी हथेली पर रचे ताजमहल को चूम लिया --एकं वार नही, कई करई बार । अब उसने अपनी हथेली समेद ली और बोली, “हेन अपने दादा वे अयाय को कंसे जाना? अजव है ना ? पे मुशी जी, तुमने उसे अपने होठा की सही देकर एक बार जैसे मेरा फिर सव कुहर लिया सारा क्लेस क्लुस सारा ताप सताप। सुशी जी! अब मैं बेखटके चेन की मौत मरूगी, बिना हारे पछताये, मौज की मौत




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