धर्मशास्त्र का इतिहास [भाग - 5] | Dharamshastra Ka Itihas [Bhag - 5]

Dharamshastra Ka Itihas [Bhag - 5] by पांडुरंग वामन काणे - Pandurang Vaman Kaane

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २६ तान्द्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्‍्त्र जब हम इस ग्रन्थ के द्वितीय सण्ड मे दुर्गा-यूजा के विषय में पढ रहे थे तो ऐसा कहा गयी था कि यह पूजा, জিউ হাব पूजा (दुर्गा को शक्ति के रुप में भी पूजा जाता हे) भी कहा जाता हे, मारे भारतवर्ष में महत्त्वपूर्ण रही है, ओर यह भी कहा गया था कि आगे के किसी खण्ड में हम रव्तिवाद की चर्चा करेगे। अब हम शावतो एव तन्नो की सविस्तार चर्चा करेगे | क्योकि इन्होंने पुराणों पर कुछ प्रभाव डाछा और प्रत्यक्ष रुप से तथा पुराणा के द्वारा मव्यवाल की भारतीय धामिक रीतियो एव व्यवहारों (आचारो) को प्रभावित किया है। तन्मे विष्य पर एकं विशद साहित्य है, कुछ गन्ध प्रकाशित एवं कृछ अप्रकारित ह्‌ । तीनो प्रकार के तन्व है, बौद, हिन्दू एव जैन । कृ तन्त হ্ধা হাজলিদ হা जाव्यात्मिक पहलू भी है, जिस पर आर्थर अवाद्ेन, वी° मट्टाचायं एव कछ अन्य लोगो फे अध्ययनों के अतिरिक्त कोई विशेष अध्ययन नही उपस्थित हो सका हे । सामान्यत लोग तत्रो से तात्यय लगाते हु शक्ति (काली देवी) की पूजा, मुद्राएँ, मन्त्र, मण्डल, पञ्च मकार, दक्षिण দান, वाम मार्ग एवं ऐनद्रजालिक कियाएँ, मिनके द्वारा अछोकिक शक्तियाँ प्राप्त की जाती हे। यहां हम बहुत ही सक्षेप मे शवितवाद एवं तन्व के उद्गम के विषय मे जानकारी प्राप्त करेगे भर देसेगे रूप से पुराणौ के द्वारा तन्त्र हिन्दू घामिक रीतियो मे प्रविष्ट होते रहे द । अमरकोश के अनुमार तन्व का अर्थं है प्रमृख विपय था माग 'सिद्धान्त' (अर्यात्‌ मत, तत्व, वाद था शास्त्र), करधा (कपडा बुनन का एक यन्त्र) या सामग्री या उपकरण । किन्तु इससे यह्‌ नही पता चलता লি त्व कार्यो का कोई विलक्षण वं है! अते एसा अनुमान निकलना दोपपूर्ण नहीं कहा जा सकता कि अमरकोश के काठ मे तो तन्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थो का प्रणयन नहीं हुआ था, या हुआ भी रहा होगा तो वे ग्रन्थे अभी जन सामान्य की बुद्धि में बठ नही सके ये । ऋ० (१०७१६) में तत्त' शब्द आया है, किन्तु वह करपा के अर्थ में ही प्रयुक्त हे, ऐसा लगता है '--ये अवोध व्यक्ति नीचे (इस विश्व से) तहीं चलते (घूमते) और न उच्च लोक मे ही (घूमते), न तो ये विद्वान्‌ ब्राह्मण है और न सोम निकालने वाले पुरोहित हे, ये (दुप्ट प्रकार की बोली ) बोलते हैं ओर उस दुष्ट [या पापमय ) बोली के साथ हछो एवं तन्त्रो को चलाते हे” अथवंवेद (१०७।४२ तन्नमेके युवती विरूपे अभ्याक्राम बयत पण्पयूखम्‌') एव तैत्तिरीय ब्रह्मण (२।५।४।३) त द्रमी अर्थ मे तम्य शब्द का प्रयोग किया हे। पाणिति (५४२७० ) ने অন্ন (নই বল जो अमी-ममी करप से उत्तारा गया हो) शब्द तत्व कि किस प्रकार प्रत्यक्ष या परोक्ष १ इसे ये 5 वाड ने पाइचरन्ति न ब्राह्मणासों न सुतेकरास । त एते वाचमधिपद्य पायया पिरीसतत्र तन्वते भभ्रजज्ञय 1 ऋ० १०७१) सायण ने व्यात्या को हे--सिरी सीरिणो भूत्वा तन्‍त्र कृषिलक्षण तन्‍्वते त न्वते विस्तारयन्ति एवन्तत्ययं ¦ न्ति




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