कमल किशोर नाटक | Kamalkishor Natak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.73 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला थण्ड, दृश्य दूसरा । श्र
घन्ता--नहीं तो आप कया इनको कोरे उर्दू नाथ दी समझतय ।
राज--नददं जी ( इशारा करके ) देखो ये कुमार कमछ किशोर
जी आ रद ः
( ददासीन भाव से कमल किशोर का प्रवेश
राज--आइये शदइजादे साहिब ( कर दाथ मिठात। दे )
( कमर किशोर एक सुन्दर कुर्घ पर रेठ जाते हैं ) ।
कमढ-कपाज राज छुपार अफेडे ही मजा ठूडना जानते हो ।
केसे जाना ।
कमछ--में भी बाद दाढान में खड़। ९ सुन रद्द था ।
राज--ओद्दो' तब्ता आप चढ़े धोख से काम छेते दो खेर !
यद्द बरतछाइये आज अप उदास क््यें। हैँ ।
कमछ--द दो एक दिन से मरी वाबियत कुछ २ खराब सी
रहती हू ।
राज-अों भी कया बात है ।
सकता क्या वात दे पिता जी ने हो यटी
कहा था ।
राज--क्या कहा था |
क्रमड--कि तुम रोज भाराप बाप में घूमने जाया करो ।
राज--ऐडा क्यों कह्दा ।
कमल--देसछिये कि बाग की हवा अच्छी होती दे ।
राज--तत्र तो जरूर दी लाना चाहिये ।
कमल--दां रोज जाया करूंपा तवियत मी ठीक दो जायगी ।
राज--अगर आपकी तबियत बहुत दी ज्यादा खराब रदती तो
डाश्टरी दूवा क्यों नददीं लेते आपके यहां तो इजार रुपय
रोज का डाक्टर रददता दे ।
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