कमल किशोर नाटक | Kamalkishor Natak

Kamalkishor Natak by सुरेन्द्रचन्द्र जैन - Surendra Chandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला थण्ड, दृश्य दूसरा । श्र घन्ता--नहीं तो आप कया इनको कोरे उर्दू नाथ दी समझतय । राज--नददं जी ( इशारा करके ) देखो ये कुमार कमछ किशोर जी आ रद ः ( ददासीन भाव से कमल किशोर का प्रवेश राज--आइये शदइजादे साहिब ( कर दाथ मिठात। दे ) ( कमर किशोर एक सुन्दर कुर्घ पर रेठ जाते हैं ) । कमढ-कपाज राज छुपार अफेडे ही मजा ठूडना जानते हो । केसे जाना । कमछ--में भी बाद दाढान में खड़। ९ सुन रद्द था । राज--ओद्दो' तब्ता आप चढ़े धोख से काम छेते दो खेर ! यद्द बरतछाइये आज अप उदास क्‍्यें। हैँ । कमछ--द दो एक दिन से मरी वाबियत कुछ २ खराब सी रहती हू । राज-अों भी कया बात है । सकता क्या वात दे पिता जी ने हो यटी कहा था । राज--क्या कहा था | क्रमड--कि तुम रोज भाराप बाप में घूमने जाया करो । राज--ऐडा क्यों कह्दा । कमल--देसछिये कि बाग की हवा अच्छी होती दे । राज--तत्र तो जरूर दी लाना चाहिये । कमल--दां रोज जाया करूंपा तवियत मी ठीक दो जायगी । राज--अगर आपकी तबियत बहुत दी ज्यादा खराब रदती तो डाश्टरी दूवा क्‍यों नददीं लेते आपके यहां तो इजार रुपय रोज का डाक्टर रददता दे ।




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